मानसवासी मेरे राम
रसराज श्री युगल सरकार की कृपा से ...
जीवन किन्हीं परिवर्तन के आयामों पर
है | ज्ञान के ना पार पहुँचने वाले सागर से
रस - आनन्द - भाव के संसार में जाना
भगवत् कृपा ही है ...
इन दिनों बहुत कुछ विचार बन रहे है ,
सभी भगवत् प्रसाद स्वरुप इस नाहक से
जीव पर उनकी अथाह कृपा से ही है ...
पल - पल नयी अनुभुति है |
जब भी एकांत होता है वहाँ से आनन्द यात्रा
शुरु होती है , और यहीं एकांत समुह में भी
जब होता है ... तो कृपा साक्षात् महसुस होती
है , जब - जब आत्मा रुपी परमात्मा से बात
करने की चेष्टा होती है तब प्रश्न नहीं उत्तर होते
है | भीतर से ही प्राप्त पर वस्तुत: वह मैं नहीं
होता मैं तो विपरित हो पा रहा होता हूँ ...
आनन्दित हो रहा होता हूँ ... मन के स्थिर होने
पर जो रस मिलता है वह अव्यक्त रस है ...
भक्ति - शब्द बडा है पर आनन्द - प्रेम - रस का
सार समेंटे है | इस ब्लोग पर यहीं कोशिश है
की यें अस्वाभाविक घटना कुछ हद तक
कही जायें ...
तृषा - यें शब्द मेरे लिये बडे मायने रखता है |
श्री राधा स्वरुप मेरे आंगन में खेलती राधा को
प्यार से हम तृषा या त्रिशि कहते है ...
पर तृषा अब जीवन का कारण ही हो गई है |
तृषा अर्थात् विशुद्ध प्यास | भगवत् प्राप्ति हेतु |
उत्कंठा , अविरस रस - प्रेम की धारा और तृषा
यें कुछ शब्द जीवन परिवर्तन में लगें है | |
मन में आने वाले बिखरे से गीत ... ना कहने
लायक मेरी कविता ... भाव | मेरा दृष्टिकोण |
और प्रतिक्षण की भगवत् कृपा ... यहीं इस
ब्लोग पर कोशिश है सागर रूपी ज्ञान मय
संसार से उत्कंठित इस बुलबुले की ||
ब्लोग पर बहुत देर से आया हूँ पर
आना तो था ही |
Comments
Post a Comment