रे मना,सद्गुरू दोष न धरिहै , तृषित

रे मना,सद्गुरू दोष न धरिहै।
युगल रूप सद्गुरू मा आए,इन्ही चरणन गहिहै।
बैठि चरणन चापत रहिहै,धो चरणोदक लईहै।
मारग जोरि सहज दिखावत,पाछे ही चलिहै।
कहि ह्रदय अंकित कर लिजै,नेक नाहि टरिहै।
लात पडै बडभाग जानिहै,चरणा नाहि हटिहै।
नाम जपन सेवा इन्ही करिहै,आनंद इन्ही दइहै।
प्यारी भली बुरी जैसौ तिहारी,गुरूवर नाही तजिहै।

यह अनुपम पद , परम् रस हृदय की झंकार से द्रवीभूत हो झरा है । काश हम सब इतने विश्वासी हो सकें अपने गुरुवर और प्राणप्रियवर पर ।
रोनाल्ड निक्सन का आध्यात्मिक विकास जिनके द्वारा हुआ उन्हें यशोदा माँ (मणिकदेवी) कहते है , रोनाल्ड ने उनके संग पार्टी आदि भी अटेंड की , सबके समक्ष वह पाश्चात्य रंग में डुबी महिला थी , जो पार्टीज में आज से 80 या 90 वर्ष पूर्व सिगरेट पीती थी । ऐसी ही एक घरेलू पार्टी में उनके गायब होने पर रोनाल्ड ने उन्हें बन्द कमरे में गहन स्थिति में पाया । बाहरी रूप से वें भौतिकी परन्तु रोनाल्ड ने उनका आध्यात्मिक दर्शन कर लिया ।
उन्हीं के संग से प्रथम यूरोपियन रसिक के रूप में रोनाल्ड कृष्णप्रेम हुये । जिनके संग ठाकुर ने अनेकों लीला की । कारण सहज समर्पण । रोनाल्ड ने गुरु और श्री कृष्ण की अभिन्नता पर साधकों को पत्र भी लिखें जिनका चिंतन हम आगे करेगें । अभी मुख्य यह बात है कि यशोदा माँ से जब वें दीक्षा के लिये कहे तो माँ ने ऐसी बात रखी जिन्हें सुन कोई भी साधक सहज समर्पण नहीँ कर सकता ।
*तुम्हे तनिक भी आध्यात्मिक उन्नति उपलब्ध अगर दीक्षा से ना भी हो तो भी तुम मेरा और भक्तिपथ का त्याग नही करोगें ।*

यह सहज नहीँ , परन्तु न्यूनतम सात्विक कामना की निवृत्ति हेतु यह आवश्यक है क्योंकि सकाम चित्त कभी आत्मसमर्पण नहीँ कर सकता । समर्पण सदा वैसा हो जैसा शिशु का होता है माँ के प्रति ।
कुछ दिन पहले मैंने किन्ही को कहा था कि अगर आपके संरक्षक अर्थात् माँ-पिता और गुरु आपको गर्म कंकडों या बजरी के ढेर पर सुलाकर कोई काम कर रहे हो बाद में आप कितने ही साधन जुटा कितना ही आरामदायक बिस्तर बना लो। आपकी स्मृति  में विकास के सूत्र के रूप में वह बजरी पर सोता आपका बचपन ही श्रेष्ठ होगा । कोई भी अनुभूत करें जीवन भले साधनों की ओर भाग रहा हो परन्तु स्मृति पटल पर अभाव के चित्र ही अंकित रहते है और वह अभाव प्राप्त समस्त साधनों से उत्तम ही है । अतः लोग अमेरिका जाकर भी गाँव की स्मृति से मुक्त नहीँ हो पाते । यह सब शरणागत भाव का कमाल था ।

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