विदेह सहज नही , तृषित
तुमने वह पंछी देखा
पर वह है नही ।
वह वृक्ष देखते हो
वह भी है नहीँ ।
यह नभ स्वयं नहीँ है
यह सब विदेह है
देह भर दृश्य । स्वयं कही परे ।
पर विदेह सहज कभी नहीँ है ।
तुम में तुम न रहो
तुम जिसके हो वह तुम रहें
तब तुम हो सकते हो विदेह
तुम्हारा देहांत सम्भव है
और प्रेमी का विदेह रूप निश्चित्
प्रेमी नहीँ है पर है !!
वह बह गया , प्रियतम में
जो तुमने देखा वह अवशेष भर
जिसे तुम मिलने को थे आतुर वह शेष नहीँ
प्रेम में दो नहीँ पर दो दीखते है
सो सहज नही ना होकर होना
और होकर भी ना होना ।
देह से विदेह प्रेमी तुम्हें शत्-शत् नमन
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