प्रेम करो
जानना है इन्हें | मांग -मांग कर ना जान सकोगें |
या तो चाहतो को पकड लो | या इनको | प्रेम करो
निश्चल-सच्चा-निर्मल प्रेम | फिर सब बदल जायेगा |
नज़रिया जो बदल जायेगा | पिघलने लगोगें | जब
सारा पिघल गये तो हल्की कसेरी परत आ जायेगी |
कोई जान ना सकेगा हृदय तो बह गया | झूठा सा
कुछ छिल्का संसार के लिये फिर मिठा फल इनके
लिये |
मेरे प्रभु से अगर प्रेम करते हो ...तो कह क्युं नहीं देते इज़हार कर दो ..हाँ वो ... सुर्य है हम बुझती लो पर
कह दो . सब सोचते है ना कहा जाये. इकरार - इज़हार तो करो | जो छिपाना है वो तो उसके बाद होगा | मत कहना भले कि क्या-क्या हाल कियें वें | छिपा
सको प्रेम तो छिपा जाना | एक क़द़म तुम्हारा साठ
इनके | ऐसा कहा जाता है ... भगवान हमारे हेतु
साठ पग लें इतने बडे नहीं हम | बड जाओ आगे
कम से कम उन्हें चलना पडे | कोशिश करनी है
भार कम करने की |
पर कह दो उनसे कि बस प्रेम है , निहारना है , सब
आपने इतना दें रखा है कि बस !!
प्रेम का एक फायदा होगा !! तुमने जो किया और वो जो कर रहे है साफ हो जायेगा - कृपा दिखने लगेगी ! ...
हर व़क्त वो साथ ना छोडेंगें | चुप ना होंगें ! कर ना सकोगें !कुछ मांग ना सकोगें | मन में आ भी गया कुछ वो कर देंगें उनका करना उन्हें तकलीफ देना दुखेगा !!अब तक जिसे दु:ख खोल खोल कर दिखाते हो | छिपाओगें कि उन्हें ख़बर ना हो |वरना जगन्नाथ मरहम लें आयेंगें |
हाँ उनके भी कई दर्द है ...कहते नहीं ... जितने बडे है उतना ही दर्द | प्रेम करो दिखने लगेगा | विचार करो
जिसे तुम चाहते हो वो पति या बेटा तुम्हारा जगत्
का दुख ही मिटाता फिरे | कोई तो चाहिये ना रात में
बाम लगाने को | इनका दर्द देख कर जी सको तो पी जाना उनको निहारते रहना ... ज़माने भर की तकलीफ़ हमारे कोमल से साँवरे ने छिपा रखी है | देखो दिखेगी |
हद है सरल होने कि सब हक जता जाते है और
यें हाज़ीर | कोई सच्चे मन से तो एक पुष्प नहीं लाता |
सब सौदा करने आते है | सौदा भी अजीब 100
रुपये का भोग लगा कर वो भी ठाकुर के लिये ना
छोड चल देते है | अजी , खाते जो नहीं यें ...
मैं तो कहता हूँ आप एक दिन खा कर दिखा दो | फिर सारे ही आ जायेंगें | छिल जायेगा मुंह इनका | रहने दो ना
जी ना |
नहीं खाते तो बांट दो जो इनके भरोसे पर है वहां |
किसी रूप में खाने का मौका तो दो |
पाते है यें प्रेम का निवाला |
थोडा सम्भालो तो सही कितने पेट भरने का भार
है | 100 में लाखों का सौदा | अब जब हर दर्द में
रो देते है वहाँ | उसे बिना मांगे सच्चे मन से जाओ
सम्भालो | वो कुछ नहीं कहते | पर कुछ है इनके
चाहने वाले जो पिया-प्रितम को प्रेम में लीन ही निहारने
को सांस ले रहे है |
हाँ यें वो भगवान है जिसे दर्द हो | जो रो दें | पर इनका यें स्वरुप ऐसा है जिसे दुखता है | प्रेम स्वरुप है |
भावमय स्वरुप |
निराकार-अदृश्य- निर्गुण नहीं यें हमारे हेतु साकार है सब सुनते है | कोई उनकी सुने तो कहते भी है | हरिदास जी को बिहारी जी के छाले भी दिखते थे | आंवले की चटनी के कुल्ला कराते है ठाकुर को |
यें कान्हा है ! राधा के कान्हा !
जिन श्री जु को देखे बिन इक पल ना रह सकते
उनके साथ ही खडे होकर जगत् में प्रेम तलाशते मोहन | मेरे गोविन्द | मिलन के क्षण में फरियादे सुनते युगल सरकार | हाँ कर लेते है अपनी और अपनों
की हसरतें पारलौकिक हो कर | फिर भी यें मांगे रुक
जाती | दुख छिपा लिये जाते | सब कहते चिंता ना
करो जी आनन्द है | आपकी बडी याद आती है सो
आ जाता हूँ | आप को सताना ना था | कोई छिप कर
देखता कि उन्हें पता ना चलें मैं आया था | श्रीजु के
साथ हमारे हेतु दो होना भी पीडा सा है | वरन् अलग है
ही कहाँ श्री जु | पर हमें दर्शन देने हेतु आप भी ना...
... ...
काश सब थम जाता और निहारने लगते सैकडों बरसों से खडे सरकार | जिन्होंने सारी रातें पग दाबे वें जाने
दर्द उनका | कुछ घण्टे में खडे होने पर दर्द से बौंखलाते इन्सान काश समझ पाते भगवान होना कितना कठिन है |
... हाँ यें भगवान है पर हमारे अपने है | अपनेपन का ख़्याल रहे |
__ सत्यजीत"तृषित"9829616230 __
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