तृषित कौन ?
तृषित ...
प्यासा !! यें कोई नाम नहीं | एक अवस्था
है | परिचय शरीर का होता है |
परिचय में सफलताओं की बात है ...
मैं एक प्यासी आत्मा हूँ ...
शरीर का क्या नाम दूँ ...
पर हर पोस्ट पर सत्यजीत लिखता
हूँ . मेरे शरीर के पिता हेतु ... श्रद्धय सुमन से |
तृषित लिखता हूँ जहाँ मुझे
वो विचार श्री जु को देना है ...
हर तरह की आध्यात्मिक अवस्था सरल
है ... श्री चरणारविन्द के अविरल ध्यान के
अतिरिक्त | हर अवस्था भी कुछ कठिन है
परन्तु श्री जु कृपा से सरल है परन्तु प्राप्त
प्राप्ति का भी बोध ना हो .
ईश्वर को जानना हो तो अबोधता होनी
चाहियें . अबोधता से बडा कोई प्रयास
नहीं ... इस प्रयास में वें आपके बडे निकट
रहते है | कारण माँ शिशु को पल भर ना छोडती . ...
अबोधता का अभिनय ना हो ...
वरन् गलत होगा .
अभिमानी मुझसे सहे नहीं जाते .
वें लाख मना करें पर प्रयास करता
हूँ .टुट जाये अभिमान ...
यें खाई है ईश्वर के लिये ...
और बडी बात यें है कि उनसे जुडा
उनको जानने वाले ... या जान चुको
में यें होता है ...
जिन लोगों से मैं अपने भाव कह चुका
हूँ . उनसे मिलना नहीं चाहता ...
व्यक्तिगत लोगों से खुल नहीं पाता .
इतना जान लेने वाले ना मिलें बस ...
मेरे आसपास के लोगों के लिये मैं पहेली हूँ .
भाव शुन्य . अहंकारी . नास्तिक ... कुछ ज्यादा ही बूरा !!
अध्यात्मचर्चा! उनकी चर्चा या कोई प्रश्न
भी अक्सर मुझे मौन रखती है ...
सच तो यें है मुझे ना ही जाना जायें ..
प्रतिक्रिया बदलते वक्त नहीं लगता ...
Ideal or idiot में बडा फर्क नहीं ..
मैं दोनों जी चुका हूं ... एक ही व्यक्ति द्वारा
सो ... प्रतिक्रिया कैसी भी हो
बदल ही जाती है ...
अच्छा कब बूरा लगने लगे पता नहीं
तो अगर पर्वत दूर से सुहाना लगें तो
करीब ना जाओ ... नजदीकी केवल
प्रभु के विषय में ही सही है !
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