हारे का सहारा ...

हारे का सहारा ...

राजा रंक हो गया , रंक राजा हो गया | उपमायें होती है | ऐसी विधियों की और ऐसे आदेशों
की और सब दौड पडते है . परन्तु वें तो यें भी नहीं जानते | दीनबंधु - दीनानाथ को क्या गरज राजा से
क्या कलुषता रंक से | जिसे छुने से मनुष्य बचे ऐसे कोडी भी उन्हें चाह सकते है | कहीं कोई
भेद नहीं | विष्टा के जीव से , नभ छुते पक्षी तक , सभी उनकी सत्ता में ही है | उनका सबके लिये समभाव है | अकारण करुणावरुणालय |  वें क्या समझते है राजा और रंक ...
बहुत सुना जाता है , बहुत कथाओं में कि रंक राजा हो गया | बडी कृपा उनकी | हाँ रंक राजा हो जाता है उनकी कृपा से | पर शायद वें उससे मुक्त होना चाहते है | वरना रंक क्यों चाहेगा कि प्रभु इस तरह कृपा कर मुक्त हो जायें | जै जै को भी प्रेम होता है तो वें मुक्त होना ही नहीं चाहते ... प्रेमी या भक्त के जीवन में ऐसी विकट से स्थिति होती है कि सामान्य जीव तो झेल ही नहीं सकता | किसी दु:ख तकलीफ का जिक्र प्रभु से ना करने वाले को मैं प्रेमी मानता हूँ | हर पल उनका दिया ... हर पल कृपा तो कैसी शिकायत |
सच तो यें है ... पता ही नहीं होता कि जिस सफर से गुजर रहा हूँ वहाँ काँटें भी थे | आनन्द छुटता नहीं | हर कांटा उनके करीब और करीब ले जाता है | कांटा उनकी दिल से याद दिलायें तो भला वो कांटा |
वें भी इतना दर्द तो देते ही है कि हृदय से प्रभु सुमिरन हो सकें | भौतिकता अचानक एहसास कराती है
ओह! मैं जहाँ खडा हूँ वो तो दलदल है | दलदल में भी उनकी यादें दलदल से मुक्त रख सकती है |
अक्सर असफलता परमात्मा की ओर ले जाती है | निराश हुआ , प्रभु की ओर मुड जाता है जब कोई सुने भी ना तो वहीं अपने लगते है | सारे रिश्ते सारे नाते जब आपकी हार से आपको तन्हा छोड दें तो बस वहीं होते है | पत्नी उलाहना दे सकती है , पति रुठ सकता है ईश्वर नहीं | अगर आप सच्चे है तो वहीं है आपको जो असहाय होने नहीं दे सकते | दीनबंधु है अपनी ओर से रिश्ता है दीन से , दीनता का भी अभिनय होने लगा है जानकर की वें मिलेंगें | परन्तु असहाय व्याकुल दीन के पास सारे संसार की उलाहना के बाद भी साथ किसका है | संवाद हो रहा है ... बांतें हो रही है | ईश्वर हर अनकही सुनते है , सभी को लगता है जो कहा सुन लेंगें ... ऐसा नहीं है , वें वो सब सुनते है जो छिपाया गया |
दर्द अक्सर कह दिया जाता है , छिपा लें तब देखें उनकी करुणा | उनका ईश्वरत्व |
हारे का सहारा ... सच हारे का सहारा | स्पष्ट कर दिया , टैग लगा लियें | पर माना नहीं | वरना जीत क्युं मांगी जाती | वें तो हारे के साथ है |
अजी साहब बडी मौज है , बडे ऐश है कोई कमी नहीं | कहाँ से कहाँ पहुंच गया | मैं कुछ कर पाऊंगा सोचा नहीं था | बडी निराशा से गया था कोई ना था तब बिल्कुल अकेला था | आज सब फिर आ गये ... जीत जाऊंगाँ सोचा नहीं था | ... ... यें है उनके बडे भक्त | जो जानते है वें हारे के सहारे है पर जीता देते है | आप तो जीतने गये थे , उनके होने नहीं | जीत गये , अब आप जिसे हरा दोगें वो उनका | हार का महत्व यही है कि ईश्वर तक लें जाती है |  पर जीत आपको लौटा लाती है | बडे शौक से टैग कर ली उनकी विकनैस | हारे के सहारे है , दीनबन्धु है | फिर जीत की मंशा भी , भक्ति का आडम्बर भी जीते की सहारा हटा |
हार वहीं मानता है जो समर्पित नहीं , वरन् समर्पित तो जीता हुआ है ...उसने उनके चरणों का सानिध्य जीता है | बहुत बार कई आराधकों को लगता है हम समर्पित है , इस बात का भी समर्पित को बोध ही नहीं होता | चरणों से ध्यान हटे तब पता हो ना कि एक जहाँ और भी है | जो डुब गया उसके बस में कुछ नहीं निकला भी तो डुबा ही निकलेगा ... डुबा ही रहेगा | निकला दिखेगा , निकलेगा नहीं |
सत्यजीत "तृषित"  9829616230 for what's app .
बहुत कुछ कहना होता है ... कोई नहीं तो वहीं ... कुछ उनसे भी नही |

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