तेरे आशिक़
सारी फ़िजा तेरी आशिक़ी में चुर
हो जाये ...
मैं रहू या ना रहूं हर द़िल तुझमें मदहोश हो जाये ...
अब मेरा जहाँ तेरे आशिकों से सराबोर होने को है ...
अब मेरी फितरत कहीं गुम हो फना होने को है
यें तेरी ईनाय़त है कि तेरे द़ीवानों के
करीब हूँ
मेरी गुस्ताखी की मुहब्बत तो मुझे भी अन्जाना कर गई
फक़त तू शायद चाहता है मुझे वरना पत्थर थे हम
कैसे तेरी मुस्कुराहट मेरा द़िल चीर गई
तृषित बेहाल जी लें पर ना छोडना इसे
इसकी नज़दीकी क़ातिल को भी फरिश्ता कर गई - सत्यजीत"तृषित"
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