सदुपयोग , तृषित
सदुपयोग
मेरा जीवन सदुपयोग वादिता के लिये प्रयास रत है ।
प्राप्त सामर्थ्य का सदुपयोग ।
। तन मन धन की गाढ़ सदुपयोगिता ।
देखिये जब तक आपके जीवन मे भूख नहीं आप रोटी के टुकड़े का सदुपयोग नहीं कर सकते ।
तृषा नहीं तब तक जल का सदुपयोग भी नहीं हो सकता ।
गाढ़तम तृषा ही रस का मूल भोग होती है जिसकी अनुभूति सेवामय रहती है ।
जीवन के प्रति तत्व का सदुपयोग कीजिये ।
न्यूनतम इकाई का सदुपयोग कीजिये ।
कैसे करेगें , जीवन का सदुपयोग कीजिये ...
अब यह सुनते ही हम अपने स्वार्थ के भोग में लगेंगे ।
जीवन कहा ...किसी नाम को न कहा मैंने ।
जीवन का सदुपयोग कीजिये , कैसे होगा ... जीवन मे द्वेत नहीं है ।
स्वभाविक नेत्र से जैसे तितली फूल का सदुपयोग करती । जैसे फूल तितली के सँग का सद भोग करता ।
जीवन के सदुपयोग की पीड़ा ऐसी हो कि सड़क पर किसी की ठिठुरन आपकी चेतना को पराई ना लगे ।
एक चावल के दाने में भी जीवन होता ... उसका सदुपयोग कीजिये ।
सदुपयोगिता भीतर प्रकट होगी जब ही जब समस्त मण्डल श्री भगवत वस्तु अनुभूत होवें । समस्त शक्तियां श्री भगवत शक्ति अनुभूत होवें ।
समस्त चेतनाएं भगवत चेतना की किरणों से झरी अनुभूत होवे ।
समस्त ... समस्त को विकसित कीजिए भीतर । वह *मैं* इस ध्वनि को ही समस्त समझता है ।
आज करोडों लोग इस देश के दुरुपयोग कर चुके है दिनांक एक जनवरी का । नवीनता को भोगा नहीं जा सकता । उसकी मात्र सेवा हो सकती है । और कथित दुरपयोग सेवा नहीं है ।
इस देश मे चेतना सर्दिली सड़कों पर बिखरी है और आपकी चर्चाओं में 31 दिसम्बर और 1 जनवरी होटल बिल है ।
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