रेणुका लालसा

उज्ज्वले श्रीप्रियाजु घनिभूत नवनीत मधुर सुधा ।
पारस मणि को पाषाण क्या देवें ।
बस लालसा करें कि छु जावें । एक रेणुका भर । चिंतामणि तो रेणुका ही है इनकी , इनकी रेणुका ही इष्ट हो । यह तो रेणुका की इष्ट सखियों के इष्ट कुँजबिहारी की इष्ट । अर्थात घनिभूत अभीष्ट प्रीतपिपासुओं के लिये ।

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