Bate
[11:42am, 02/06/2015] सत्यजीत तृषित: आपके शरीर का एक रोआ टुट
जायें तो क्या आप रोते है ...
प्रलय ऐसी ही है ...
उनके लिये क्षणिक .
उत्पति स्थिति संहार में
ईश्वर का समान भाव है
बिल्कुल एक ...
उत्पति पर प्रश्न नहीं तो
संहार पर क्युं ...
बहुत मामुली घटना है
प्रलय उनके हेतु ...
जैसे हमारा एक स्वप्न टुट
नया स्वप्न लेना ...
बस !! अधिक कुछ नहीं ...
यें संसार स्वप्न ही है ...
ईश्वर का ...
जैसे हमारा स्वप्न होता है वैसे |
यें विराट है क्योंकि स्वप्न देखने वाला
भी विराट ही है ...
एक अंगडाई सृष्टि बदल देती है ...
हम भी सृष्टि करते है स्वप्न में ...
हमें उसके टुटने का दुख है ...
नहीं ना ...
बस वहीं ही है ...
इसे विवर्त मान कहते है !!
सब स्वप्न ही है ईश्वर का ...
माया से सच प्रतित होता है ...
योगनिद्रा है यें ईश्वर की ...
[11:54am, 02/06/2015] सत्यजीत तृषित: जिन्हें भी रहस्य जानने है
वें किसी और के कथन को
ना मानेंगें ...
माने तो मेरी ही क्युं ...
सब की माने ...
आप स्वयं तलाशे ...
किशोरी कृपा से ही
सच जाना जा सकता है
कहीं मत भेद ना होगा ...
सब धुल जायेगा कि
विष्णु राम शिव गणेश ब्रह्म
वायु अग्नि श्रेष्ठ क्या है ...
किशोरी चरण के अतिरिक्त
कहीं भी गये तो मत होगा ...
जैसे शैव हो जाएगें
साक्त हो जायेगें ...
किशोरी निर्गुण कर देगी
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