पिया को बुलाओ ... प्रेम कविता
सखी प्राण निकलते है
पिया को बुला लाओ
पिया बिन मरना ना चाहूं
पिया अंग में ही नैन गिराऊं
पिया को बुलाओ मोरे
प्राणो को बुलाओ री
और ना सताओ अब
अधरन सुखते है
आँखें ना मुंदुंगी
जाओ उनसे कुछ कहूंगी
नित आते थे जब वें
कुछ भेंट ना किया तब
आज प्राणों को
भेंट करुंगी
बांहों में लेंगे पिया
फिर सांसेे ना लुंगी
आज जी भर छुऊंगी
प्यासी ना मरूंगी
नैनों में देखुगी
किशोरी दरश करुंगी
सांसों को सुनुंगी
राधे राधे संग कहूंगी
होले से ही पकडूंगी
उन्हें ना चुभुगी
मुस्कुराने पर ही मरुगी
देर ना लगाओ सखी
साँवरे से मिलाओ सखी
चुपके लाओ सखी
उत्सव सजाओ सखी
हाय प्राण अब रुके बैठे है
प्यासे रहे सदा अब पिया बिन बैठे है
आये जब तक
ओ सखी "तृषित" को सजाना ..
पिया को बुलाओ मोरे
प्राणो को बुलाओ री ...
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