राधा जी महाभाव

��सर्वाराध्या किशोरी जी��

������������������

प्रियतम श्यामसुन्दर किशोरी जी के रूप, गुण, स्वभाव तथा  कमल लोचनों की प्रशंसा ललिता सखि से करते हुए इस प्रकार वर्णन करते हैं -

हे ललिते!

तुम इन सुधावर्षिणी पुष्पमालधारिणी अपनी प्यारी सखि को नहीं जानती तुम्हारी सखि भक्तानामभयदायिनी,     सर्वसम्पत्प्रदायिनी परममंगलालया हैं।ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृति देवाराधिता विपुल मंगलप्रतिमा सर्वविघ्न विनाशिनी हैं।
ये षडैश्वर्यशालिनी परम परात्परा हैं। कोटिसूर्यसमप्रभासमन्विता त्रैलोक्यपालनकारिणी हैं।ये सर्वसमर्था वृष्टि-प्रमोचन विनिग्रह हेतुभूता हैं। ये सर्वधर्मधुरीणा कल्याणशोभना त्रिदेवों वन्दिता हैं।

प्रियतम आगे वर्णन करते हैं -

हे ललिते सुन!

इन सदयहृदया सर्वक्षेमविधायिनी के समान अघहारिणी भवतारिणी सुखकारिणी अन्य कोई भी नही हैं।

चूडामणि मुक्ता समलंकृता पद्मविलोचिनी कोटि-कोटि चंद्रमा से भी अधिक सुशीतला हैं। नितान्तमृदुला स्नेहार्दा नवनीत से भी अधिक सुकोमला हैं और करूणालया अनघताविग्रहा किशोरी जी अनन्तान्त तीर्थों के समान पावित्रय प्रदान करने वाली हैं।
  वे वेदात्मा हैं। वेदान्त, वेदांग, आराण्यक, उपनिषदादि एवं आर्ष वाङ्मय की जन्मदात्री हैं।

सर्वान्तरनिवासिनी  घट-घट व्यापिनी जीवमात्र के समस्ताशुभशुभ कर्मों की साक्षिणी हैं।

मन्दस्मित निन्दित शरच्चन्द्रानना मातृहृदया नित्यवत्सला किशोरी जी सहस्त्राधधिक कामधेनु से भी वढकर हैं, जो सकल देव दानव मानव के सभी मनोंरथों को सिद्ध कर देने में परम समर्था हैं।

हे ललिते सखि !
आगे सुन-

अधरामृतकलशी अचलानुपमसुयशी नानारत्नोपशोभिता किशोरी जी की व्यास,नारद,शुक, सनकादिक महर्षि-देवर्षि-राजर्षि गण सतत वंदना करते रहते हैं।

सप्तर्षि मरीच, अत्रि, अंगिरा, पुलह, क्रतु, पुलसत्य, वशिष्ठ इनकी वैदिक ऋचाओं से सतत स्तवन करते रहते हैं।
षड्-ऋतुऐं इनके संकेतानुसन्धान की अभिप्राप्ति के लिये सदैव तत्परा रहती हैं।

प्रभाति के समय नवग्रह,सप्त सरितायें गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिन्धु, कावेरी किशोरी जी के पदपद्म का अपने शुचिजल से प्रक्षालन करके चरणाम्बु को अञ्जलि में लेकर पान करती हैं।

पुराण वर्णिता  सप्त कन्यायें अहिल्या, द्रोपदी, तारा, कुन्ती और मन्दोदरी नित्यवन्द्या किशोरी जी की सप्त परिक्रमा लगाकर उनके पदरज से अपने भाल पर तिलक करती रहैं।

हे सखि ललिते!

इनकी कनकाभान्वित अंग-अंग से दिव्य स्वर्ण-कान्ति क्षणे-क्षणे प्रस्फुटित होती रहती है।

श्री किशोरी जी,
सर्व विद्याओं एवं कलाओं की आधार स्वरूपा, पाण्डित्य की सीमा, वैदुष्यकी अगाधता, शास्त्रों की मर्मज्ञता
बुद्धिमत्ता की तीव्रता, चातुर्य की अथाहता, विवादकाले मति की कुशाग्रता, निजजन-रति की विपुलता,भावाभिव्यञ्जन की कुशलता, वक्तृत्व की पटुता, भावों की गंभीरता, गोपन में दक्षता आदि देखकर देवी देवतागण अचम्भित होते हैं।

उनके चरणों की मृदुलता, गज-गति की मन्द-मन्द पद विन्यासिता, कटि की सूक्ष्मता, वक्षःस्थल की मनोहारिता, भुजाओं की अजानुलम्बिता, कृष्णवेणी की वक्रता, कपोलों की चित्ताकर्षिता, नासिका की सुघरता, बुलाक की चञ्चलता, श्वास-प्रश्वास की सुवासितता, नयनों की सुदीर्घता, लोचनों की सजलता, भ्रूललिता की वंकिमता, ललाट की भव्यता, स्वर्णिम नथ की वर्तुलता, वर्तुलाकार नथ में मणि-माणिक्यय मौक्तिकानुपम रत्नों की लुभावनी विजाडि़ता, रत्नांकृत कनक नथ की गौर कपोल से मनोहारिणी संपृक्तता, कर्णकुण्डल की डुलनता, भूमध्ये रक्तिम विन्दुता, सन्दूरी रेखा की अरूणता, नीलाम्बर की सुन्दरता, अंगो की ललितता, नवलतन की कोमलता, अन्तर कि रसिकता, स्वर की मधुरता, गायन में प्रवीणता, चित्त की द्रवणशीलता,सौंदर्य की अनन्तता,स्वभाव की सरसता, गौरवर्ण की नयनाभिरामता, रस विस्तारण की योग्यता, क्रीङा-केलि में निमग्नता,जल संतरण में प्रियता आदि आदि की साकार स्वरूपा रसीली नवेली रँगीली अलबेली,  किशोरी जी को देखकर मर्त्यलोक, नागलोक, देवलोक, स्वर्गलोक की अखिल किशोरियाँ बलि-बलि होती हैं।

प्रियतम श्यामसुन्दर ललिता सखि से फिर कहने लगे--

अभी तक मैें अहैतुकामितावरिलापराथाहानुकम्पामूर्ति श्री किशोरी जी के विधेयात्मक सद्गुणों का वर्णन करता रहा।
अब उन महामोहान्धाकर्षिणी दरिद्रताभाग्याभावापत्ति निवारिणी के अन्यानुपमेयाद्भुतात्यद्भुत किञ्चिदन्य गुणों का भी श्रवण कर लो।

हे ललिते!

वे सर्वार्थसाधिका जन-जन परिपालन परायणा शरणागत की सब-मल-मर्दिका हैं, अघापहारिका हैं, रोग निवारिका हैं,माया-मारिका हैं, विपदा-जारिका हैं, दुर्मति नष्टिका हैं,भव-भय-शोषिका हैं, पाप-ताप-शाप दाहिका हैं, तम-घन टारिका हैं, त्रिताप निकन्दिका हैं,त्रिदोष घातिका हैं, त्रयैषणा-कर्षिका हैं, आरोग्यववर्धका और प्राणी मात्र के लिये चरमादर्शिका हैं।

उन अतुल प्रतापिनी महापुण्य शालिनी सुषमा कन्दिनी मधुर भाषिणी के महान गुणों का वर्णन कितना ही करूँ, उसका अन्त कदापि आ ही नही पायेगा।

अरी सखि! कैसे बताऊँ !

इनके ह्रृदय में सदा सर्वदा प्रेमार्णव तरंगायित रहता है।
प्रेम-रस-सुधा-समुद्र में निमग्न रहना इनका सहज स्वभाव है।
अनुराग की यह साकार स्वरूपा हैं।सदैव लोकोत्तर भावराज्य में विहरण करती रहती हैं। ये आत्मस्वरूपिणी अतिदुर्गम्या हैं। परमैश्वर्य सुमंगलालयाकी कीर्ति पताका चतुर्दिक सदा फहरती रहती है। किशोरी जी की अतुलनीय नयनाभिरामता को देखकर बिश्ववन्दिता उमा रमा ब्रह्माणी के मन में ईर्ष्या होती है।

ललिता सखि -

प्यारे! तुम यह क्या कह रहे हो ? विश्व में भगवती उमा रमा ब्रह्माणी के सौन्दर्य की सर्वत्र चर्चा है।

श्री प्रियतम -
तुम त्रिदेवों की शक्ति त्रिदेवियों की सुन्दरता पर भले ही मुग्ध हो परन्तु मैं त्रिलोक और चौदह भुवन में सीमातीत सौन्दर्य की साक्षात प्रतिमा सर्वेश्वरी किशोरी जी के मनोहारी रूप का वर्णन कर रहा हूँ।

वे नानारत्नोपशोभिता करूणा वरुणालया, सर्वकल्याणकारिणी, नित्यमुस्कानयुक्ता, कल्पवल्लरी समाना, भुजालतिकासंयुक्त्ता, सर्वांगसुन्दरी हैं। परन्तु कनक कान्ति विकीर्ण करने वाली अंग के मध्य अत्यधिक नयनाभिराम नयनों की सुन्दरता सर्वाधिक है।

वे कहते चले जा रहे थे -

इनके आकर्ण्य सुदीर्घ नयनों की शोभा का वर्णन क्या कभी कोई कर पायेगा।

ऐसी महिमामयी, सर्वैश्वर्यमयी, बहुगुणधामिनी,लावण्यसरिता, सर्वाराध्या श्री किशोरी जी के आकर्ण दीर्घ सुघर लोचन द्वय, नयनाभिराम नयनों का वर्णन करते हुए एक कवि ने क्या सुन्दर कहा है -

खंजन खिजाने हार कानन सिधाने हेर,
जलज लजाने किये अलिगन चेरे हैं।

झिक झहराने जल तल ही धराने रहैं,
तीक्षन अनँगजी के सर गर गेरे हैं।

दास कहैं जेते हैं हिरन ताके जेर कीये,
लली के सरी ये अनंद देन हेरे हैं।

कारे अनियारे कजरारे रतनारे प्यारे,
चंचल चलाक ऐंडदार नैन तेरे हैं।

टारे हैं टरे न कर जतन अनेक लीने,
नेक ही निहारत घायल कर डारे हैं।

डारे हैं जलज गार केते सर सरतन के,
खंजन खिस्याने अलि केते जिय हारे हैं।

हारे हैं हिरन हहराने झहराने झेके,
दास कहैं ग्यान लख कानन सिधारे हैं।

धारे हैं धरारे तीखे सान धरे अनियारे,
नैन हैं कि तेरे जो अनंग के कटारे हैं।
������������������
(प्रत्यक्षदर्शी अनुभवगम्य राधा-सखि-मञ्जरी स्वरूपा निकुँज विहार रहे, परमपूज्य श्री राधाबाबा जी के संस्मरण पर आधारित एवं श्री राधेश्याम बंका द्वारा लिपिवद्ध रचना से उद्धृत)

   ��जय जय किशोरी जू��

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय