अश्रु ... आँसु ... अश्क़

! आंसु .. अश्क़ .. अश्रु !

आँसु ! जहाँ कुछ नहीं , वहाँ आंसु ! जहाँ कुछ ना रहा वहाँ आँसु !

संसार के लिये आंसु बहाना वैसे ही है कि पहले काँच का घर बनाओ
टुट जायें तो रो लो ! संसार में आपको अगर चोट मिली तो कुछ नया ना
हुआ | होता ही है ... आप गलत जगह विश्वास दिखायें ...
नुकसान - हानि कैसी भी हो संसार के लिये ना रोयें | आगे बढे ... यें कुछ
नया ना हुआ |

प्रभु प्रेम में आंसु !!
यें लेख भाव के आधार पर है ...  आँसुओं कि तरह | आँसुओं का कारण पुस्तकों से
वहीं खोजेगा जो जीवंत ना पाया हो |
आत्मा परमात्मा की है पर सांसारिकता में उलझ गई है | जब प्रभु से जुडेगी
पश्चाताप् का रुदन होगा | प्रभु ही आत्मा ध्येय है , मार्ग से भटक जाने का दु:ख
तीव्र जब होगा जब परमात्मा (प्रभु जी) की अनुभुती तीव्र होगी | वें सामने से होगें |
अनुभुती हृदय का विषय है वहीं परम् तत्व प्रकट होता है | हृदय जो करेगा तुरंत
परम् को छुयेगा | परम् (प्रभु जी) जो करेंगें वो हृदय पर घटेगा |

परम् की अनुभुती में वेदना आपकी ही नहीं , उनकी भी है | वें आनन्द से छुयेंगें
तो किसी हाल में आनन्द ना रुकेगा | जै जै हँस कर छुयेंगें हँसे बिन ना रह सकोगें |
वें छुकर नाचे और कोई ना नाचे यें असम्भव है | वें करुणतम् है छुते है तो आनन्द और करुणा संग ही आती है ... उनकी ही करुणा है अश्रु | उनके भाव भी हमारे
द्वारा ही बहते है | चैतन्य का नृत्य प्रभु का ही है | तुलसी बाबा की दीनता प्रभु का ही
दैन्य भाव है |

सुक्ष्म आत्मा का विराट परमात्मा में मिलन होने पर कुछ तो घटित होगा | वही
घटना अश्रु है | मिलन के आवेग में जितनी तीव्रता होगी ... अश्रु वैसे ही बहेंगें |
जै जै दोड कर बांहों से लिपट जायें तो रुदन ही होगा ... करुणा आनन्द के ऊपर
की घटना है | ऐसे क्षण केवल आनन्द ही नहीं रहेगा ... करुणा होगी ... नेत्र बहेंगें |
तरंग की तीव्रता सीधे हृदय पर जाती है , हृदय जिन तरंगों को ना सम्भाल पायें वें
बह जाती है |

प्रेम बृहद् नाद से ले जाकर विरह की नदी में उतार देता है वहीं से करुणा घटती है |
विरह प्रेम का महाप्रसाद है | विरह का प्रसाद ... अश्रु है | विरह बडा विराट घट गया
जितना विरह ज्ञात होगा अश्रु उतनें ही होंगें | विरह ने युग देंखें है ... योनियाँ भोगी है
अब ज्ञात हुआ कहाँ से छुटे कहाँ फँसे है और ऐसे फँसे है कि निकलने की महा
शक्ति घटे तब ही कुछ हो ... यहीं विरह वेदना ... उत्कंठा है | उत्कंठा की तीव्रता
विराट के आलिंगन से जोड देती है |

जै जै के लिये शब्दों के महा जाल है | वेद-पुराण-उपनिषद-भाष्य- संहितायें खुलती तो
है व्यथा के धरातल से पर जब कुछ समझ ना आयें या किसी एक भाष्य से दूसरा विपरित अर्थ दें तो घटती है करुणा | कि मेरा मार्गचेतन करें प्रभु | पथ आपका है पर
विभिन्नतायें विचलित कर रही है |

जब स्तुति-स्तोत्र भी लगें कि इतने सरल नहीं है प्रभु | जब प्रभु हेतु शब्द ना हो |
जब स्थितियाँ उन्हें ना छुयें | जब ज्ञान की वर्षा भी अनुभुती का अलाप भी ना लें |
तब घटती है करुणा और अश्रु बह जाते है |

जो भाव कहे ना गये , जो शब्द सुना ना गया , जो दिख कर ना दिखा , जिसने छुआ
पर हलचल अनकहीं ही रही | यहीं अनकहा जो वेद-पुराण में नहीं | जहाँ शब्दों की
पुर्णआहुती हो गई | जहाँ सीमायें मिट गई | जहाँ का दृश्य केवल आप देख रहे हो |
किसी से कुछ ना कह सकने की स्थिति ही अश्रुधारा है | अव्यक्त निर्गुण अश्रु |
भाव - वेदना - विरह - प्रेम - आनन्द सब की पराकाष्ठा है अश्रु | जहाँ यें घट ना
सकें वहाँ से बह जाते है | तीव्र उन्माद से होता है रुदन प्रेमी-प्रेमास्पद हेतु |
अश्रु एक सच है कि अब कुछ ना रहा सो बह जाओं ...

अश्रु रक्त से बने तेज का भी शुद्ध अर्क है | जैसे पुष्प के अर्क से ईत्र | अश्रु से
शुद्ध कुछ नहीं | अश्रु वासना की मृत्यु से घटते है | वासना ही ना रहे तो तेज अर्क
बनकर बहने लगता है | शुद्धतम् रस है अश्रु |

योग में सहस्रार चक्र में रस बनना ही अंतिम स्थिति है पर वहाँ रस संघटित होता है
बहना वहाँ असंगत है बहाव योग तोड देता है ... प्रेमी यही रस बहा देते है नेत्र से |
सो यें प्रभु हेतु बडे अमुल्य है ... अश्रुभाव के बाद देने को कुछ शेष नहीं रहता
उनके पास | वें ख़ुद चले आते है और एकाकीकार से उनके हिस्से का भी प्रेम
आप ही बहाने लगते है |

जीवन में जो रो गया वो बह गया | मान लें कुछ अहित घटा आप रो दियें तो पुन:
सामान्य हो जायेंगें | पर ना रोयें पीडा को शक्ति बना लियें तो आप कठिनताओं को
पार कर जायेंगें | जीत जायेंगें ... केवल ना रोने से यें हुआ और होता भी है ...
भावहीनता शिखर की और उठा देती है | सोचियें अश्रु भीतर रह जायें तो क्या नहीं
कर जाते ग़र वो भी बह जायें तो प्रभु आपकी सरलता पर झुक जाते है ...
अश्रु बहाना यानि शक्ति ही बहाना |

जिसने सब सौप ही दिया हो , पूर्ण समर्पण | तन-मन-जीवन सब | उसके पास अश्रु ही सेवा है | भाव कुछ भी हो ... प्रेम-दीनता-आनन्द-उन्मत्ता पूर्ण प्रवाह तो अश्रु
धारा ही है | प्रेम हो , प्रभु जीवन हो ... सब कुछ हो और अश्रु ना हो तो इससे बडी निर्धनता कहीं नहीं ... तृषित | यें लेख आदेश से है ... प्रसाद से | कैसे यें आप विचारें इस विषय पर काव्य भी रचना है पर अभी नहीं लिखा जा रहा यहीं विराम लेते है ...
प्रत्येक प्रेमी की आँखें नम हो ... प्रभु प्रेम में अश्रु बहाने की कृपा हो | आशीष हो की जीवन अश्रु सेवा में गुजरे इसी भाव से सत्यजीत "तृषित" , लेख अपुर्ण है अत: नाम हटाना सही नहीं होगा | किसी पिपासु पर राधा जु की कृपा गिरने दें | ...
| श्री राधा चरण कृपा |

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