अनुराग रँगिनी स्यामा चरण धूलि , तृषित

अनुराग रँगिनी स्यामा चरण धूलि ।

अनुराग रंग्यो जिन रेणु अंग सुगन्धीनि

ऐसो धन छुपत लालकुँवर बाँधत उप वस्त्रण कोरणी ।

ब्रज रज धन्य नित् स्याम चलन पद कंज स्पर्शिनी ।

रज स्यामा अति मंगल सुकुमल मधुर सुपद धरनी ।

ओ पुनि मंगल पद वासे जबहि नागर रचावे तिलक स्यामा पद रंजनि । 

अनुराग रँगिनी स्यामा चरण धूलि ।

जो जन कलि धरत ललाम ललित वृंद रेणु संग धूलि नन्दिनी ।

ऐसो भाग पावत बड़भागिनी जन छुटत जग कर्म बंधनी ।
--- सत्यजीत तृषित ।

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