भगवान का होना ही सच्ची मानवता

Prabhu apne svikar ko nahi apni nekta MANAVta ahinsa shanti ko apnane ka sandesh dete he🙏 🙏🙏--

तृषित --
क्या सृष्टि में आप किसी अहिंसक प्राणी को जानते हो
परमाणु पदार्थ की न्यून इकाई है क्या वह अशांति का कारक नही होता
प्रेम हुये बिन वास्तविकता कभी नही फलित होगी ।
अशांत चित् सदा शांति का शंख बजाता है ।
जीव कभी शांत नही हो सकता ।
जब तक उसे वास्तविक प्यास और रस की अनुभूति ना हो ,
कोई बच्चा शांत जन्म लें तो उसे जबरन रुलाया नही जाता , जन्मदात्री चाहती है कि वह जन्मते ही रोवें , न रोवे स्वभाविक शांत हो तो सब भयभीत हो उठते है
मनुष्य अपनी बुद्धि से कभी सृष्टि को सुंदर नही कर सकता , वह स्वभाविक सृष्टि को बिगाड़ सकता है  । सृष्टि का सौंदर्य जब बढ़ेगा जब अचाह  का विकास हो । कोई चाह न हो । हम पत्थर को भी वही रहने दे जहाँ उसे ईश्वर ने स्थान दिया । अपने आशियाना बनाने के नाम पर सृष्टि चक्र अशांत ही करते है ।
अतः वास्तविक शांति भगवत् चरणाश्रय में है ।
भगवान क्यों कहेगे कि आप उन्हें प्रेम करो , नही कहेगे । क्योंकि माँ को सन्तान से इतना प्रेम होता है कि वह उसके हित के लिये सहज वियोग को जी लेती है , कहती नही कि मुझे प्रेम लौटा दो , यह तो स्व विवेक की बात है ।
जीव सच में सजीव है तो ईश्वर का होकर , अन्यथा स्व हेतु निर्जीव प्रायः ही है ।

[8/1, 11:36] सत्यजीत तृषित: मुझे लगता है अगर हम कोई राजनीती , भृष्ट विचार दे तब ही आप खण्डन कीजिये । आप जो शान्ति चाहते हो उसे स्व फिर घर फिर समाज फिर देश फिर धरती तक करना होगा । इसका सरल सूत्र है , सर्व के मंगल की भावना से भगवत् भजन किया जावें । ईश्वर कभी अहित नही करते , जीव प्रतिकूलता को बर्दाश्त नही कर पाता , और अनुकूलता और सुख साधन हेतु ईश्वर की भावना के विमुख कर्म करता है और उनका सदा सुंदर फल चाहता है ।
[8/1, 11:38] सत्यजीत तृषित: आपने कहा कि ईश्वर कभी अपने को स्वीकार करने हेतु नही कहते ,

कहते है , बार बार कहते है । शास्त्र भरे है । गीता में एक नही कई तरह से कहे है । कौन माँ रोते बच्चे को गोद में नही लेना चाहेगी
[8/1, 11:43] सत्यजीत तृषित: मेरा उद्देश्य ईश्वर की ओर होने से है । धर्म का भी यही सार है ।
आप विकृत वृतियों का खण्डन करें तो बेहतर होगा ,
सार्थक प्रयास के खण्डन का तात्पर्य यह हुआ कि सार्थक कदम न उठे ।
आपको संसार सत्य प्रतीत होता , जबकि यह असत्य है यह आत्मा को किसी अन्य सद्गति प्राप्त होने पर ही पता चलेगा । प्राणी का विकास पूर्णत्व के समावेश में है । सृष्टि के यज्ञ है जिसमें सर्व रूप स्वाहा होना है ।

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