धर्म क्या है ? ग्रुप टॉक से ... तृषित

[7/21, 23:34] सत्यजीत तृषित: किसी ने एक ग्रुप पर पूछा
धर्म क्या है ?

कुछ वहाँ दिए भाव ---

[7/21, 22:30] सत्यजीत तृषित: फ़िलहाल आप किसे धर्म कहते है या जानते है ??
[7/21, 22:42] सत्यजीत तृषित: धर्म को सब भिन्न रूप ही जानते और मानते है , और अर्थ भी भिन्न लिये जाते है , बहुत बार जिस कर्म को धर्म जान किया जाता वह धर्म नही होता ।
धर्म आज गम्भीर विषय है , जिस पर बात होनी भी चाहिये ।
[7/21, 22:45] सत्यजीत तृषित: क्योंकि अब तो हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई यह धर्म समझ आते सभी को , ...
कुछ गहरा व्यक्त होने को सनातन धर्म को वातस्विक धर्म कह दिया जाता है , जबकि सनातन के रूप में पुनः खण्ड ही किये जाते । वास्तविक सनातनता नित्य है पर दर्शन की चाह के अभाव से वह प्रकट नहीं ।
[7/21, 22:50] सत्यजीत तृषित: धर्म पर बात होनी चाहिये
क्योंकि कोई भी जीव एक जीवन में एक धर्म नहीं अनेकों धर्म निभाता है । देह धर्म , काल धर्म , अवस्था धर्म , स्थितिधर्म आदि आदि ।

धारणा धर्म कही जाती । अब धारणा क्या ?
आत्म चिंतन का विषय ।।।
[7/21, 22:55] सत्यजीत तृषित: एक बालक के अलग और वृद्ध के अलग धर्म कैसे होते ।
धर्म क्या है ? वास्तविक धर्म कैसा है ? क्या उसकी क्षति होती है ? यह विचारणीय प्रश्न है ? जिज्ञासा उठे तो निशाना भी लगेगा ही । अब तक उठे सवाल जीवन में उत्तर बन आये ही होंगे । अगर एक लम्बी पारी खेली है तो विचार कीजिये क्या बदला जो बदल गया वह धर्म होगा नही , और क्या न बदला । जो न बदला और हितैषी भी है जीव का वह धर्म है ।
[7/21, 23:01] सत्यजीत तृषित: बड़ी खूबी से मैंने खुली आँखों से ख्वाबे मन्ज़र में आशियाँ चुन लिया
मत तोड़ो मेरी खुली आँखों में बन्द गहरी नींद को मेरे यारोँ ,
अब जाग गया तो ख़्वाब फिज़ूल फ़साना होगा
गर हक़ीक़त कुछ और है तो मुझे सदा सोना ही होगा ...

यह आज हाल है ।
sleeping time , कोई जगना चाहे जब न ।।।
[7/21, 23:02] सत्यजीत तृषित: धर्म को एक वाक्य में कहु तो प्रवृति से निवृत्ति तक जो पथ लें जावें वह धर्म है
[7/21, 23:04] सत्यजीत तृषित: मानव धर्म है मनुष्य का , मनुष्य के उत्कृष्ट स्वरूप को जीवन्त करना । पुर्णत्व की प्राप्ति
[7/21, 23:07] सत्यजीत तृषित: वास्तविक धर्म जब तक प्रकट होता ही नहीं जब तक दृश्य धर्म के शिखर पर न पहुँचा जावें । धर्म नित्य है , और सदा जीवन में घुला है , कितना ही वातावरण दूषित हो धर्म सदा निर्मल रहेगा । बाहर से लगता है , धर्म का पतन हो रहा है । पतन जीव अपना करता है , और अहम में धर्म को पतन होता कह कर रक्षक होना चाहता है, जबकि धर्म जीवन का रक्षक है ।
[7/21, 23:08] सत्यजीत तृषित: धर्म ही वस्तुतः सत्य पथ पर गतिशील होता है
[7/21, 23:09] सत्यजीत तृषित: व्यक्ति वस्त्र बदल सकता है , त्वचा नही , धर्म त्वचा है
[7/21, 23:10] सत्यजीत तृषित: हिन्दू मुस्लिम हो या मुस्लिम हिन्दू यह धर्म होते तो बदलने से अब तक वह सूत ही उत्पन्न न होता ।
धर्म रक्षक है , धर्म की रक्षा को आज बहुत संस्था है , जबकि धर्म क्या है ? यह वह भी नही जानते
[7/21, 23:20] सत्यजीत तृषित: धर्म क्या है ?
यह सार्थक प्रश्न है अतः कुछ कहा ... कुछ कहना आवश्यक है । क्योंकि अगर हिन्दू धर्म को धर्म कहे तो हिन्दू कहाँ है कोई ?
भीतर अमेरिका - लन्दन , स्कुल में फ्रेंच , खाने में चाइनीज़ और अरेबियन ।
वस्त्र किस देश के हम नकल करते पता नहीं , बहुत कुछ बदल गया , कर्मकाण्ड से कथा स्थल तक (मलेशिया जाते पानी के जहाज आज मोस्ट डिस्टिनेशन कथा का , वहां सभी वेजिटेरियन तो सम्भवतः न जावें , अतः श्रोता ही विकृत धार्मिक वक्ता तो राजनीति के असफल लोग ही  )
बहुत कुछ रोज बदलता है जो बदलता है वह धर्म नहीं ,
हाँ शास्त्र के यथार्थ अनुसरण पर वास्तविक धर्म आँखों के सामने होगा शास्त्र का एक अवधि और स्थिति तक श्रद्धा और विश्वास से पालन करने पर ।

प्रवृत्ति से निवृति को जाता पथ धर्म है । तुम नहीं जाओगेँ वह जा रहा निवृत्ति को वृद्धावस्था में स्वतः निवृत्ति जाग जाती कैसे कोई तो है जो अब भी हित चाहता है यह हितैषी आपका धर्म है जो अभिन्न है ।
[7/21, 23:22] सत्यजीत तृषित: धारणा धर्म है , किसी के लिये हलाल और किसी के लिये झटका धर्म हो गए । क्या यह धर्म है ??
[7/21, 23:26] सत्यजीत तृषित: धारणा धर्म है , पर कौनसी धारणा ।
किसकी धारणा , शराबी की या जुआरी की या रिश्वतखोर की या पाखण्डी की धारणा ।।

समस्त धारणा की उपाधि (छुटने की भावना और ललक) के शीर्ष पर एक धारणा है जब सब धारणा छुट जावें तब वह दिखेगी वह धर्म है ।
अपने सब पथ का त्याग होने पर एक पथ दृश्य होगा जिस पर आप स्वयं को बहता पाएंगे वह धर्म है
[7/21, 23:32] सत्यजीत तृषित: वह धारणा जो है पर नित्य है आज नहीं पैदा हुई सृष्टि न थी तब भी थी, उस धारणा पर आप को चलना पर हमने अपनी धारणा बना ली , परम्परा बना ली , हमारी त्वचा गली नही , सड़ी भी नही ,बस मैली है । अतः वह उतर सकता है । जब मैल उतरा तब आपका वास्तविक वर्ण आपके पास होगा , आपकी त्वचा का वास्तविक वर्ण वह है जो आपको जन्म के दिन रहा वह मिला फिर वातावरण और खानपान से आज यह वर्ण हो गया । सब सुंदर है , हर शिशु सुंदर है , हर वृद्ध जन्म के अनुपात मे कुरूप है यह कुरूपता वह इक्कठी करता है ।
[7/21, 23:52] सत्यजीत तृषित: धर्म क्या है 2

[7/21, 23:35] सत्यजीत तृषित: वास्तविकता कुछ और है , विवेक की जागृति से पूर्व सब व्यर्थ
[7/21, 23:38] सत्यजीत तृषित: सर्वधर्मान् परितज्य ...सब धारणाओं से छुटने पर जिसने हमें थाम रखा हो वह धर्म है

एक शब्द में कहु ईश्वर का मंगलमय विधान धर्म है और उसका अनादर अधर्म ।
[7/21, 23:41] सत्यजीत तृषित: अधर्म इसलिये कि वह ईश्वर की भावना के विपक्ष में है ।
विचारों के समूह में धर्म न दिखेगा ।
विचार निवृत्ति , मन के निरोध पर जो विचार भीतर हो पर वह उठा न हो बस वहां नित्य हो , वह वो विशुद्ध विचार हो जो अनेक विचारों में दब गया वह धर्म है ।
[7/21, 23:43] सत्यजीत तृषित: स्वभाविक चलती वायु धर्म और यंत्र आदि से शरीर सुख को चली वायु अधर्म , अर्थात् पंखे से ac तक अधर्म क्योंकि इसमें ईश्वर का विरोध हुआ है ।
[7/21, 23:45] सत्यजीत तृषित: इतनी स्वभाविक्ता पहले भारत में थी जो छुटती जा रही है अतः भारत में आज विकास यात्रा है पर धर्म का असन्तोष है । आज हर 40 पार मन ही मन चूल्हें की रोटी याद करता होगा । कारण वह रोटी पकाना भी प्रवृति से निवृत्ति को ले जा रही थी ।
[7/21, 23:51] सत्यजीत तृषित: यांत्रिक मानव को प्रथम वास्तविक मानव होना होगा , फिर धारणाओं को उतारना होगा ,मन से नंगा होना अर्थात् । फिर वास्तविक धर्म सन्मुख होगा ।
सूर्य धर्म है , सूर्य की इच्छा शक्ति से मनुष्य स्वयं को कर्म अनुरूप जानता है , सूर्य जब सर्दी में साढ़े 6 तक आता है और शाम 6 बजे जाता है तब मनुष्य उस अनुरूप अपनी दिनचर्या करता है , वास्तविक कर्ता ही धर्म है । वह काल हो अथवा प्रेम या जीवन ,  कुछ भी अनुभूत हो सकता है  , यथा दृष्टि भाव ।
सत्यम् शिवम् सुंदरम ।

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