इश्क़ के परिंदों की एक आवाज़

इश्क़ के परिंदों की एक आवाज़
वही कहना जो सुन रहे है
सब वही कह रहे है वही सुन रहे है
बड़ी गज़ब होती है इनकी मुलाकातें
एक सा नाच उठता है और
उठती एक सी बातें ...
खामोशियाँ भी गुजरती सब में एक सी
तूने किसी को कुछ पंख दिए
और ऐसी मुहब्बत पिला दी कि वो उड़ गया
पंख तो मैंने भी बहुत बटोरे थे
उन्हें गिरना आता था ना जाने उड़ना कहाँ छुटा था
तेरी हवा - तेरा आकाश -तेरा पंछी - तेरे ही पंख
नाचते नभ पर किसी परिंदे से जब नज़र किसी तरह मिली
साँसों में सवाल बना कर उसकी और फ़ेंका
क्यों उड़ते हो तुम - चुग कर दाना इतना उड़ जाते हो !
कल न मिला यें बिन सोचे तब भी उड़ जाते हो ,
किस का इश्क है जो हवा में खेल जाते हो ,
कभी कभी हवा में रोकते हो जब पंख ऐसा क्या छु जाते हो ,
और थे सवाल बहुत ...
उसने पँखों से उसे पढ़ा
जिसे पसंद नृत्य हमारा उस हेतु हम उड़ जाते है ,
जिसे पसन्द स्वर शब्दहीन हमारा उस हेतु चहचहाते है
जिसने दिया कोई दाना उसे सदा रिझाते है
कभी हवाओं में रूबरू हो जाते है ...
कभी संग-संग नाच जाते है
यह तुम्हारा उत्तर है !!

सच अब भी दूर है ...
इश्क के हम परिंदे
इश्क से ही आ हम उतरे
इश्क़ ही हमें उड़ाता है
इश्क़ किसी का हवा में नाच जाता है इश्क़ क़ुदरत सजाता है
इश्क़ ही फ़िज़ा पर फ़िदा हो जाता है हमारा अक्स गुम हो जाता है
कोई है जो इश्क में हर बार उतर जाता है ।
इश्क़ के हम परिन्दे हमारी एक आवाज़ ...

इश्क में सब का एक हाल है

कभी सोचा था ...
चिड़िया गुफ्तगू बारी बारी क्यों नही करती । सब संग संग चहचहाती है । सबके दिल में जब एक ही लफ्ज हो एक ही ज़ज्बात क्या बारी ...
क्या इंतज़ार ... जो तुझे कहना वो
ही था मुझे जब कहना , तो चल संग संग मिल कर कहे । कभी जब तू गुम होगी , तभी तो मुझे है गुम होना । इश्क के परिंदों की एक आवाज़ ।।।

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