रस और धारा, तृषित

राधा वह है जो धारा नहीं , परन्तु राधा तो प्रेम सार की मूर्त भावना है , प्रेम धारा क्यों नहीं ?
प्रेम राधा क्यों ?
अर्थात् धारा सदा प्रेम के विपरीत ही रही है , धारणाओं से उठने पर ही राधा होती है । जीव का मूल तत्व प्रेम है , और माया के प्रभाव से वह धाराओ में बहता है , जबकि उसे आत्म रूप को सत्य जान भौतिक निर्वहन और सम्बन्ध हेतु नहीं प्रेम मय होकर निष्काम भाव से निर्मल प्रवाह से अन्तः मुखी होना चाहिये । इस तरह वह प्रेम पथ पर होगा धारा नही राधा पथ पथ पर । बाहर चेतना का धारावह होना माया है और उसी समूल सम्पूर्ण चेतना का अन्तःकरण में ईश्वरोन्मुखी होना राधा ।
धारणाओं से प्रेम की सिद्धि नहीं होती , उन्हें तोड़ने से भी नही होती , तोड़ने से तो कई नव धाराओं का संचार होने लगता है । धारणाओं से उठ कर ही प्रेम पथ जागृत होता है । किसी वस्तु का भोग सहज है , वस्तु को नष्ट करना भी सहज है ,उस वस्तु का त्याग ही असहज है । अतः धारणाओं का त्याग असहज है । और वहीँ मनुष्य को अन्तः मुखी करेगा । धारणा तो संसार को सत्य सिद्ध करेगी । स्वयं को देह से जोड़ देगी । आत्मा रूपी जीवात्मा का पथ राधा है , ना कि दैहिक पशुत्व का पथ । जब तक देह ही सत्य लगें , मैं देह हूँ यह लगें , संसार सत्य लगेगा , जीव का मूल पथ प्रेम है और वह नश्वर जगत में उलझ गया है क्यों ? वह जुड़ना चाहता है जगत से , लोगों से , इच्छाओ से ... छुटना नहीं चाहता । जगत ही जगतपति हो जावें तब राधा राधा हो ।।। राधा प्रेम की पूर्णतम स्थिति है , जीव को माया ने पकड़ा नहीं वह स्वेच्छा से माया मुखी अतः माया को पकड़े है ।

***

राधाकृष्ण मिलित तनु -
यह युगल तत्व है , दृश्य अदृश्य सृष्टि का सार युगलतत्व है । जो युगल है वही चैतन्य है । युगल स्वयं मिलित तनु मय अवस्था में पूर्ण चैतन्य है । श्रेष्ठ और लघु दीर्घ नही । चैतन्य  युगल है , युगल चैतन्य । हाँ युगल की मिलित तनु अवस्था रस सार को इस तरह रसास्वादन हेतु अवतरण ले कर पीना यह सहज  अवस्था नही , इसमें भगवान चैतन्य को कितना धीर और थिर बाह्य भीतर कम्पन स्पंदन से गुजरना हुआ होगा । उनकी भावना में वह युगल की मिलित अवस्था में नित्य बह रहे है ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय