आप की खुशबुएँ क्यों इस तरफ इतनी आती है हमने तो सोचा न था माटी भी चाँदनी खेंच लाती है वो कौनसा लम्हां था जो धुंधला ख़्वाब सा छा गया मुझमेँ तारों की ओढ़नी संग रात क्या याद दिलाने आ...
धोती कुर्ता पाजामा कम्बल चादर तकिया गद्दा छाता खाना पीना और सब कुछ !! हाँ , सब कुछ !! पर सब कुछ तुम हो , मेरे सब कुछ तुम हो , यह कहा था , अब सब तुम ही !! मेरा संसार तुम हो ! मेरे संसार में तु...
कौन हो तुम ? मैं कहूँ ... कौन हो !!! सबसे अलग ! सबसे न्यारे !! सारी सृष्टि से भिन्न हो तुम !! दिव्य ! अपरिमित ! गहन हो तुम ! तुम ही सत्य हो , शेष असत्य !! तुम इतने विराट हो कि स्वयं को ... परिभाषित नह...
मन-युद्ध मन-युद्ध क्यों ? मन की पकड़ी अंगुली भी क्यों ? मन से विरोध असम्भव है , तृषित मन वहीँ है जो तूने कल देखा मन स्वर्ग के पुष्प को नहीँ सूंघ सकता मन ने उसका विचार ना किया विचार...
जीवन पथ तैयार नहीँ वह बन रहा जहाँ तुम चल रहे जहाँ बैठे वहीँ खो गया फिर क़दम गिरा तो पथ पर ही जीवन आकाश सा पंछियों के पद चिन्ह नहीँ छुटते उड़ना ही पथ उनका जहाँ को उड़े , वहीँ पथ खुल ग...
तुम मुझमेँ हो उतरी उतनी ही गहरी उरियां किस तरह ग़र है इतनी तन्हाई फिर रगों में सरसराता एहसास किस तरह दौर भर तन्हां सा हूँ फिर उन शब भरी रातों की हया किस तरह अब बह चले इधर और उधर , ...
" कसक " "कसक" मेरे दिल की या तेरे दिल की एक ही तो बात है "कसक" हवाओं की या तेरे केशुओं की एक ही तो बात है "कसक" तेरी ख़ामोशी की या मेरी ग़ज़ल की एक ही तो बात है "कसक" मेरी सांसों की सरसराहट या त...
सुकून सागरों में तैरते पत्ते की तलब है सुकून हमने देखा है बस उन निगाहोँ में सुकून सुकून वो जाम है बिन पूछे कही किसी को पिला दीजिये यहाँ टूटते पंख और उड़ते बादल भी तलाशते है सु...
अश्कों में मोहब्बत मेरे मेहबूब की बहती है धड़कन मेरी साँसे ख़ुशबू उसकी होती है हमने यादों के दरिया में दिल की कश्ती चाँदनी संग गुजारी थी आँसमा के दामन की सलवटें अपनी आँखों म...
इश्राके ज़िया जागने के तरीके भी बदल गए रातों में तकिये संग आश्ना इत्तिका आगोश फिर ना बदला लम्हां-लम्हां अब्सारे ख़्वाबे तस्वीरें तो बदलते ही गए पलकों का बेफ़िज़ूल शिक़ायते-अं...
सारा जहाँ मोहब्बत की अल ए ग़ज़ल पिला रहा और है जिसे मोहब्बत वो इब्तिसाम पर अटक सुन रहा मुहब्बत हो मुझे , इतना भी ख़्वाब-ए- आशियाँ ज़रूरत नहीँ हैं उन्हें मुहब्बत बेइन्तहा मुझसे , ये...
क्या मैंने गंगा को छुआ है ... या गंगा ने कभी मुझे छुआ !! अगर मैं छु जाता तो क्यों न , उस में लुढ़कता ही रह जाता सम्भवतः गंगा से बाहर निकलता कैसे ? क्या उसने भी छुआ ? नहीँ अगर छु देती तो , वह ...
आस्तिकता !! यह बड़ी बात है , गहरा शब्द ! शायद उसे कहते है न जो जीता सदा भीतर और भीतर !! वैसे आस्था बिन सम्भव ही क्या ? श्वसन - प्रश्वसन से लेकर जनन - मरण तक बिछी है आस्था !! शास्त्र जानता है...
श्री भक्तमाल-सुंदर कथा (श्री अम्बादास जी) संत श्री समर्थ रामदास स्वामी एक दिन अपने शिष्यों के साथ यात्रा पर निकले थे। दोपहर के समय एक बड़े कुएँ के निकट एक सघन वृक्ष की छाया म...