ओ मेरे हुज़ूर
ओ मेरे हुज़ूर
यूँ तो आप छलकते मचलते मुहब्बत के समन्दर है मेरे हुज़ूर
फिर भी यें दिल नहीँ कहता किस क़दर मुहब्बत आपसे हो मेरे हुज़ूर
आरज़ू तो है हम बस निगाह समन्दर में डूब जाएं आपकी मेरे हुज़ूर
और करें फिर बेकरार दिल की कोई हसरतें , होगी गुस्ताखियाँ ही मेरे हुज़ूर
मग़र दीदारे पनाहनवाज की समन्दर निगाहों का जब सोचते भी है मेरे हुज़ूर
मेरी निगाहोँ में कोहरा बिछाता तूफां कहाँ से तब लौट-लौट आता है मेरे हुज़ूर
जब भी मेरी नज़रों ने अपनी तलब भर गुस्ताखी से पलकें हटाई जो मेरे हुज़ूर
आप की नज़रें मेरी ओर ज़मी हर दफ़ा मेरी आँखों को मिली , ओ मेरे हुज़ूर
हाय ! शर्म , मेरी ज़रूरत तो नहीँ फिर भी पलकें गिराने आ चली है क्यों , ओ मेरे हुज़ूर
और यूँ तब-तब मेरे दिल और निगाहोँ के मदभरे अरमान और छलकते है , ओ मेरे हुज़ूर
सोचा तो था कि दीदार मेरी कहानी हो , निग़ाह उनसे जा मिलें और न लौटें , मेरे हुज़ूर
फिर इस हद - बेहद देखना आपका और मेरी फ़िज़ूल हया किसका है क़ुसूर , ओ मेरे हुज़ूर
एक तरकीब मेरे दिल में उठती है कि दो घड़ी आपको देख भी लूँ , मेरे हुज़ूर
आप मेरे दिल में उतर कर सुन भी लो ना अरमां ,जाने क्यों होंठ हिलते नहीँ , ओ मेरे हुज़ूर
फिर मेरा दिल नहीँ है पास मेरे , ख़ुद ही के दिल से सुन भी लो तलब , ओ मेरे हुज़ूर
साँस मेरी धड़कती है आपके दिल से , यें महकता पैगाम उसी ने तो नहीँ भेजा ,ओ मेरे हुज़ूर
अब कब्र को भी नहीँ सब्र , कह ही दूँ दीदारे सनम तरक़ीब ,ओ मेरे हुज़ूर
तो आप मश्गुल रहें अपनों के संग ज़रा नज़रें उधर भी कर लें ,ओ मेरे हुज़ूर
यूँ मेरी ओर जब आप ना देखोगें कहीँ अपनों संग दिल की बात खोलोगें , ओ मेरे हुज़ूर
तब कहीँ जा कर मेरे "तृषित" अरमानोँ को कुछ मुकाम की प्यास मुकम्मल हो , ओ मेरे हुज़ूर
आप भी देखो और मैं भी देख लूँ , नज़रों से नज़र एक कर ही लूँ मेरे हुज़ूर
यें तो एक हसीं ख़्वाब है , ऐसी खूबसूरत हद करने की इंतहा कहाँ मुझमेँ है , ओ मेरे हुज़ूर
मेरे गुलज़ार आप जब मुझे ना देखोगें तब ही मेरी पलकों से हया के बादल हटेंगे , मेरे हुज़ूर
यूँ तो आप ने ही किया समन्दर की तह से गहरा इश्क़ फ़क़त क़तरा भी यहाँ , ओ मेरे हुज़ूर
काश इन निगाहोँ में दीदारे सनम का मर्ज़ ना होता , ओ मेरे हुज़ूर
फिर जो होता यें मर्ज़ तो सदियोँ के संग दीदारे हौसला भी होता , ओ मेरे हुज़ूर
--- सत्यजीत तृषित ---
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