तृषित शायरी

[5/8, 00:11] सत्यजीत तृषित: साथ हो कर भी तेरे मैं साथ नहीँ
पास हो कर भी तेरे मैं पास नहीँ
[5/8, 00:11] सत्यजीत तृषित: तू कही और  बागों में खिली कलि सी है खिली
फिर तेरी ख़ुशबुओं से थी पहचान सो मुहब्बत हो चली
[5/8, 00:13] सत्यजीत तृषित: मेरी मुहब्बत मुझे मिली और हवा सी मिली
किस कदर कहू मिली की हवा में तो भी न मिली
[5/8, 00:17] सत्यजीत तृषित: फ़क़त उसने निगाहें गिराई जहाँ वहाँ हो चला
कमबख़्त उसकी निगाहोँ पर आँसुओ का पर्दा बह चला

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