मेरे सरकार! मेरे माधव!!
मेरे सरकार! मेरे माधव!!
तुम और तुम्हारा तेज़
मेरे जिस्म, मेरे रूह के एक एक संवेदना को
धधका रहा है
और तुम्हारे जादू भरे होठों से
रजनीगंधा के फुलों की तरह टप टप रसिले शब्द झर रहे हैं
एक के बाद एक के बाद एक
कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दाहत्व.......
मुझ तक आते आते सब बदल गए हैं
मुझे सुन पड़ता है केवल
माधव, माधव, माधव......
शब्द, शब्द, शब्द
तुम्हारे शब्द अगणित है किंतु-------सांख्यतित
पर उनके अर्थ मात्र एक है
मैं!
मैं.... और केवल मैं!!
फिर उन्ही शब्दों में अपना इतिहास मुझे
कैसे समझाओगे?????
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