किस तरह , तृषित
तुम मुझमेँ हो उतरी उतनी ही गहरी उरियां किस तरह
ग़र है इतनी तन्हाई फिर रगों में सरसराता एहसास किस तरह
दौर भर तन्हां सा हूँ फिर उन शब भरी रातों की हया किस तरह
अब बह चले इधर और उधर , फिर इब्तिसाम मुलाक़ाती-ख़्वाब किस तरह
ग़म में लगते जब किसी को फिर अंदर खेल तेरे गेशुओं से किस तरह
चादर में हमारी हैरत भी नहीँ फिर चाँदनी है संग किस तरह
यूँ अब नींद से वास्ता नहीँ फिर ख़्वाबे-ख़्वाहिश में बिस्तर किस तरह
कमबख़्त सांसों से वजहा अब है नहीँ , फिर मुस्कुराने का फ़ितूर किस तरह
सच कहो तुम अभी हो या नहीं हवाओं में छुता एहसास किस तरह
गिरा तो तृषित तेरे बिना जहन्नुम में था फिर फ़िरदौस समाँ किस तरह
सत्यजीत तृषित
उरियां= ख़ाली, शून्य, विहीन
इब्तिसाम= मुस्कुराहट , जहन्नुम= नरक , फ़िरदौस= स्वर्ग ,
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