तृषित लाइन्स
[5/23, 09:57] सत्यजीत तृषित: दो दिलों में जब बातें होती है
लफ़्ज़ों की ज़रूरत कहाँ होती है
वो बातें कुछ बहती हवा में बौछार हल्की सी होती है
दिलों दिल में साँसो के तार से गुजरती है
[5/23, 09:57] Shreea sharma delhi fb: फ़क़त उस शाम का सज़दा ...
(हमें) गलत हो गया
सज़ा वो होती है जो सही नहीँ जाती
कमबख़्त इश्क़ में मौत तो दुआ होती है
फिर कौनसी सज़ा जिससे इंतहा होती है
कमबख़्त डूब कर भी नहीँ लगता कि हवा है या पानी ।
यहाँ है जो हवा होगी कही न कही पानी
माँगना पड़े ऐसा कौनसा नाता
रिश्ता वह है दिल कहे दिल समझ जाता
[5/23, 10:00] Shreea sharma delhi fb: तेरी सज़ा यही है कि मेरे दिल में उठी सज़ा को पढ़ लेना
और फिर उसे तुम बिन कहे मुकम्मल कर लेना
कितनी गहरी झील तू है तूने खुद को कभी समझा ही नहीँ ।
हमने सुनी जैसे ही तेरी झरझराहट , अब तू कह दे जाये कहाँ ।
दे कोई किनारा ठहर जाएं , यही पर
तुम , खड़े , रहे , जहाँ थे वहीँ ...
हम भी खड़े रहे जहाँ निगाह गिरी वहीँ
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