ना बदला
इश्राके ज़िया जागने के तरीके भी बदल गए
रातों में तकिये संग आश्ना इत्तिका आगोश फिर ना बदला
लम्हां-लम्हां अब्सारे ख़्वाबे तस्वीरें तो बदलते ही गए
पलकों का बेफ़िज़ूल शिक़ायते-अंदाज़ ना बदला
जन्नतें-ज़िन्दग़ी में रोज जश्ने- जनाज़े बदलते गए
किसी फ़ैज़ की गुरेज़ में फ़ाज़िलेशाह ना बदला
फ़रियाद ज़िन्दां सजाने के इबादत औ इरादे बदलते ही गये
गुनगुनाती साँसो की सरगम के तरानों में रियाज़ ना बदला
वक़्त के ताब में पलक के पसीने में सर्द-गर्म अहसास बदलते गये
दो वक़्त की भूख औ आब-ए-तलब फिर ना बदला
ज़िन्दगी तेरी ज़रिफ़-ज़र्ब ही नौबहार ज़फ़र में बदलते गये
नम करवटों के आँसमा में यादों का अब्र कभी ना बदला
शब-ए-ख़्वाब गुलिस्तां फिर गुमसुम ज़ौ में हमारे जहाँ भी बदलते गये
कमबख़्त नसीम में बहता कैसा मर्ज़ ज़ादू की दुनिया में नासाज़ तृषित ना बदला
--- सत्यजीत तृषित ---
इश्राक - प्रभात , ज़िया - चमक , इत्तिका= सहारा,
आश्ना= प्रेमी , अब्सार - आँख ,
जन्नत= स्वर्ग , जनाज़ा= अर्थी,
फ़ाज़िलेशाह - ईश्वर , फ़ैज़= स्वतन्त्रता ,
फ़रियाद= पुकार , ज़िन्दां= कारागार तराना= धुन , रियाज़ - अभ्यास ,
ताब= ताप , आब - पानी ,
ज़िन्दगी= जीवन , ज़फ़र= विजय, लाभ ।
ज़र्ब= घाव-चोट, ज़रिफ़= तीक्ष्ण ,कोमल ।
नौबहार= वसन्त का आरम्भ ,
नम= सीलन , अब्र= बादल ,
शब-ए-ख़्वाब = रात का सपना ,
गुलिस्तां= गुलाबों का उपवन ,
जहान= संसार , ज़ौ= प्रकाश, सूर्य का प्रकाश ।
नसीम= मन्द समीर , नासाज़= असन्तुष्ट , ।
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