पिंजरे की चुहिया , तृषित

*पिंजरे की चुहिया*

परेशान थे हम
घरेलू चुहियाओं से

उनके कुतरने की हद इतनी थी
बिन कुतरा खोजना मुश्किल था
सब सामान अब उनका था

कितना ही छुपाया फिर भी कुतरा था
गलती से कोई किताब वो ना कुतरती
तब उनपर प्यार भी आता 

बच्चों से ज्यादा वो भागने लगी
यहाँ वहाँ
कोना कोना उनका था
हमने उतना मकान अब तक नही छुआ

परेशान बहुत होने लगे
लगा दिया पिंजरा
छोड़ दिया एक लोभ का टुकड़ा

जब बन्द वह उसमें हुई
तब हुई हैरान
यह क्या हुआ ??

फिर छोड़ कर आना था बाहर कही दूर

कहां ले जा रहे हो मुझे
मेरे घर से क्यों निकाल रहे हो ?
वहीँ मेरा सारा वंश है
किस अजनबी दुनिया में ले जा रहे हो ।

ओह ! उसे सब अपना था लगा
हर सामान उसे खुद का लगा
सो वह कुतरते रहते ...

... यह सब हमारा था ।
तुम्हें बाहर फेंकना है ।

तुम्हारा ! तुम्हारा कैसे हुआ सब ...
वह तो हमारा था । हम उन पर खेलते थे ...
सब सामान में छिपे रहते थे ।

कैसे समझाऊँ ! तुम्हें
हमारा था यह ।
और सच कहूं
हमारा भी नहीँ

तुम्हें तुम्हारा लगा
हमें सहन ना हुआ

हमें हमारा लगता है
पर है नहीँ ।

आज तुम बाहर जा कर फेंक दी जाओगी
बहुत कुछ कुतर डाला तुमने
पर तुम्हें यह पाप लग रहा ...
मुझे यह सफाई लग रही

ममता थी तुम्हारी वहाँ सो
पराई चीज़ छूटने पर हैरान हो

क्या सच वह मेरा नहीँ ।
नही मान सकती
देखना लौटुगी फिर

मेरे साथियों की पुकार से
लौट सकूँगी
तुम कही छोडो आ जाऊँगी
और सच कहूँ वह हमारा है
तुमने अपना मकान बनाया
हमारे घर पर ।

हमने सहा , पर थी हमारी यह भूमि
तुमने कब्ज़ा किया
हम बसे थे वहाँ ,
बिन पूछे तुमने घर हमारे उधेड़ दिए
अब कहते हो
हम तुम्हारे घर में आ गई
अरे, तुम हमारे घर में आये
पर हमने तुम्हें फैका नहीँ

आज मेरा ममत्व टुटा है
कल तुम्हारा भी टूटेगा

हाँ , जब तुम्हारी तरह मुझे
सब छोड़ना होगा तब यहीँ कहूंगा
मेरा घर , मेरा सामान , मेरे लोग
कहां फेंक रहे हो ...

और जिनका यह है
क्या वो कहेगे मेरी तरह
तुमने मेरा सब कुतर डाला

भृम है हमारा "मेरापन"
न यह तेरा है , न मेरा है

जो जिसे फैक रहा
उसे लगता उसका है

सच में यह जिसका है
वही सब से सच्चा है
-- सत्यजीत "तृषित"

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