धाम साध्य है , तृषित

"धाम" साधन नही है , साध्य है ।
धाम को हेतु नहीं जानना रस प्राप्ति का , धाम का प्रकट होना और रस का प्रकट होना दो बात नहीँ । अगर रस प्रकट है तो धाम ही प्रकट हुआ है । युगल का नाम धारण कर ने वाली जिह्वा तक धाम की शक्ति से न पूरित हो तो युगल नाम सम्भव नही । ऐसे ही हृदय में युगल अनुभूति देह का धाम से सम्बन्ध करने पर ही सम्भव है । धाम स्थूल नहीँ , स्थूल देह का ही धाम से सम्बन्ध हो तब ही रस प्राप्त हो ऐसा नहीँ , धाम स्वतन्त्र है , हाँ धाम का रस प्रकट होने पर ब्रज के बाहर स्पष्ट नीरसता द्रश्य होती है। धाम साध्य है , धाम सिद्ध हुआ तो युगल से नित्य सम्बन्ध स्वतः होगा ।
धाम युगल के प्रेम का सूचक है अतः प्रेम पथिक के लिये धाम का प्रकट दर्शन ही जीवन है ।
धाम-सखी-युगल आदि सब में सब सिद्ध है और सभी के आश्रय से रस प्राप्त होता है । कोई भी एक इनमें सब से जोड़ता है और सब से जुड़ना ही नित्यलीला प्रवेश है । वरन कोई न कोई साधक एक से जुड़ा है । अभिन्न स्वरूप होते ही लीला प्रकट हो जाती है ।
तृषित

https://youtu.be/UZZ2K3E2H1A

महाचैतन्य में प्रविष्ट होने पर भाव और महाभाव सब अतिक्रान्त हो जाते है एवं मिलन या विरह किसी की भी सार्थकता नही रहती । आत्मा की तृप्ति करने के लिये ही इनकी (मिलन-विरह) व्यवस्था है ।

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