थाम लो प्रियवर , तृषित
*थाम लो प्रियवर*
एक धागा है , जो बाँध देता है मन और प्राणों को प्रिय वस्तु में ।
प्रेम की अवस्था को निवृत्ति (बन्धन मुक्ति) कहा जाता
परन्तु भोग से प्राकृत प्रवृत्ति होती । जो प्रेम से वास्तविक प्रवृत्ति हो जाती । प्रेम में जो होता वह ही वास्तविक जीवन है । भोग करने से , रस लेने से वस्तु पदार्थ का उनसे अभिन्नता नहीँ रहती । भोग नही कर पाने से ही गहन बढ़ता हुआ प्रेम प्रकट होता है ।
प्रेम प्रवृत्ति से तुरंत नही निकालता उसके स्वरूप को बदल देता है ।
जगत का बन्धन कष्टप्रद परन्तु प्रेम बन्धन नित्य रस वर्धक । जिससे मुक्त होना प्रेमी नहीँ चाहता , प्रेम ऐसी स्वतन्त्र स्थिति है जो परतन्त्र कर देती है , जिसमें फिर स्वतंत्रता श्राप लगती है ।
--- तृषित
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