अश्रु कण
अश्रु कण
तुम क्यों विलुप्त हो गये
तुम तो पिय बिन थे संग
पिय विरह में
तुम ही थे
मेरी निधि
कहाँ गए तुम
कभी थे अनवरत संग
देखो तुम्हें टटोलती अँखियाँ
नभ दर्शन कर खेंच ही लाती है
यह नभ पिय रूप ही ...
तुम रहा करो संग
वरन अँखियाँ पाती
सब ओर पियदर्शन
कहाँ गए तुम
मेरे पिय स्मरण को सींचते
... नन्हें नन्हें अश्रु कण !!!
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