गहन लालसा जीव स्वप्रकाशित शक्तिपुंज नहीं है । वह नित्य प्रकाश से चेतन अणु शक्ति भर है । जैसे सूर्य की रश्मियों में अनन्त प्रकाश-कण होते है परन्तु वह स्वयं सूर्य नहीं है , हा...
भजन का मर्म *श्री प्रभु के नाम , स्वरूप , गुण , स्वभाव , लीला , रुचि , हर्ष और आह्लाद से अभिन्नत्व की प्राप्ति भजन है ।* हम सभी प्राकृत प्राणियों की स्वभाविक बाह्य स्मृति है दृश्य प...
भगवत प्रेम-प्रचार भगवत रस प्रचार बाहर द्वारा कराई जाने वाली अभिव्यक्ति है नहीं । आंतरिक अनुभूति है । यह श्रीप्रभु ही सम्पादित करते है । वह जबरन प्रेमी के जीवन को सर्व के ल...
वेणु को भाव स्वरूप महत्ता: सुधामृत स्थिति वेणु में कैसे हैं? वश्चंद्र: ववौ तौ अणू यस्मात् तस्मान् वेणु:" मोक्षानंद कामानंद ये दोनों तुच्छ हैं। इंद्रादि देवता महादेव परमेष...
भजन पथ जिस प्रकार निर्मल साधक के लिये प्रपञ्च सँग से भजन हानि होती है वैसे ही प्रपञ्च को साधकों के सँग से प्रपञ्च की हानि होती है । और भजन की हानि आंतरिक हानि है उसे भजनानन्द...