कनकता , तृषित

गौरांगी उज्जवले प्यारीजू के प्रीत भरे मान से वे काँचने हो जाती है । कनकता रूपी दर्शन ज्योत्सने चन्द्रिका में तनिक थिर थिर मान मयी चाल से अभिभूत हो रहा है म अर्थात यह भी श्रीयुगल रस का श्रृंगारक है । यह विदग्धता रूपी भावनाएं और मान रूपी स्वांग ना हो तो निभृत श्यामाश्याम को अन्यत्र कोई सेवा की ही आवश्यकता काहे होवे । ना ही अनन्त महाभाव मकरन्दिके-उज्जवले-प्राणेश्वरी-गौरांगी श्रीराधिका सदृश्य ही होवें , कहीं किन्हीं निम्न स्तरों के समक्ष । प्रकाश भर से नयन चौन्ध जाते हमारे । तब यह प्रकाश की मधुर उज्ज्वल जननी कोमलांगी-श्रीरासेश्वरी ... ... ... तृषित । जयजयश्री श्यामाश्याम जी ।

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