वेणु को भाव स्वरूप महत्ता:

वेणु को भाव स्वरूप महत्ता:
सुधामृत स्थिति वेणु में कैसे हैं? वश्चंद्र: ववौ तौ अणू यस्मात् तस्मान् वेणु:" मोक्षानंद कामानंद ये दोनों तुच्छ हैं। इंद्रादि देवता महादेव परमेष्ठी ब्रह्मादि वेणुनाद सों मोहित भये तब जड चेतनजीव जल थल की तो कहा गति की जाय।ये विभोर होंय तो आश्चर्य ही कहा। सुधा स्थानापन्न वेणु। वेणु स्वरुप रसदाता श्रीमहाप्रभु और विकसित रस करिवें वारे श्रीविट्ठलेश और वेणु में जो सात रंध्र हैं वह सातों गिरधर, गोविंद, बालकृष्ण, गोकुलनाथ, रघुनाथ, यदुनाथ, घनश्यामादि बालक और वा रस के भोक्ता समस्त पुष्टि मार्गीय वैष्णव जीव ब्रजभक्त जिनमें छिद्र द्वारा सात स्थिति पैदा करें। प्रभु को रसदान में रसानुभव करि भाव विभोर करें।
सात रंध्रन को भाव एवं प्रभाव या प्रकार है-
भक्ति, प्रेम, आसक्ति, आवेश, प्रमेय, व्यसन, मूर्छा।
ठाकुरजी ने अधरामृत जो अधरन में धर्यों वही अधरस्वरुप श्रीस्वामिनीजी को भाव है। हस्त है वह श्रीचंद्रावलीजी को स्वरूप है। कंठ सों बजावत है वह कुमारिकान को भाव है।सप्तरंध्रन में छ रंध्र है वही श्रीस्वामिनीजी के भाव सों हैं वे षडैश्वर्य दाता हैं।
१ चंद्रावलीजी रसपानार्थ।
२ सोलह सहस्त्र अग्निकुमारिकान के
      रसपानार्थ।
३ गौअन के रसपानार्थ।
४ गोवर्धन रसपानार्थ।
५ पशुपक्षी रसपानार्थ।
६ देवतान के रसपानार्थ।
या वेणु में जो पोल है वह संसार की लौकिक वासनान को हृदय सों छुडाय देवें। और भक्ति रस में ओतप्रोत करिकै भावविभोर करिदैं। यासों ही प्रभु वेणु कों सदा पास राखें। ठाकुरजी शुद्ध भाव देखि अपने स्वरुपानंद के भाव सों वाकों अंगीकार करैं।
पद्मनाभदासजी ने वर्णन कियो है-
मधुर ब्रज देश बसि मधुर कीनो।
मधुर वल्लभ नाम मधुर गोकुल गाम मधुर विट्ठल भजन दान दीनों।।
मधुर गिरधरन आदि सप्ततनुवेणुनाद सप्त रंध्रन मधुर रुप लीनों।
मधुर फल फलित अति ललित पद्मनाभ प्रभु गावत अलि सरस रंग भीनो।।
उपरोक्त सात रंध्रन की स्थिति पदाधार पै एवं वार्ता से या प्रकार है:

भक्ति-
मा ई री श्याम लग्यौ संग डोलै। वार्ता वृंदावन दास छबीलदास आगरा निवासी।

प्रेम-
गोपी प्रेम की ध्वजा।
वार्ता मानकुंवरबाई।

आसक्ति-
पिय मुख देखत ही पै रहिये।
वार्ता कुंभनदासजी।
एक बार विट्ठलनाथजी इनकी आर्थिक स्थिति देख द्वारका यात्रा में संग लै जायवे की कही।कुंभनदासजी टारते रहे। राजभोग सेवोपरांत अपसरा कुंड पै सायंकाल विश्राम भयो तब वहाँ यह पद गायो-
कहियै कहा कहिवे की होई।
प्राननाथ बिछुरन की वेदन जानत नाहि न कोई।।
या पद को गाय गाय बहुत अश्रुधार छोडन लगे। और एक पद गायो-
किते दिन ह्वैजु गये बिन देखे।
यह पद सुनि गुसांईजी समझ गये। ये आसक्ति में विरह प्रभावित हैं। तब आग्या किये कुंभन तुम्हारी यात्रा है गई। और वे न गये।

आवेश-
ताते माई भवन छांड बन जहियत।
वार्ता काशी वारे सेठ पुरुषोत्तम जी की।
प्रभु सेवा में शक्ति और आवेश सों ७० वर्ष को हू किशोर है जाय।

प्रमेय-
हरि सौं एक रस प्रीति रहीरी।..परमानंददास गोपिन की प्रेम कथा शुक व्यास कहीरी।

ब्यसन-
मेरो माई हरि नागर सों नेह।....सरिता सिंधु मिली परमानंद भयो एक रसतेह।
वार्ता गज्जनधावन।नवनीत प्रिय राजभोग न अरोगते।आज्ञा किये गज्जन आवेगो तो अरोगूंगो।

मूर्छा-
ब्रज की पोर ठाडो सांवरो ढिठोना तिन मोहि मोहि ल ई।
वार्ता द्वारकादास की ये जब जब प्रभु के दर्शन करते मूर्छा खाय जाते भाव में तन्मय होय जाते।
या प्रकार वेणु नाद के स्वरुपन कों भक्त या प्रकार भावना करै तथा मानै है।वही वेणुनाद के पद आश्विन शुक्ल सप्तमी तक गवें।'
-श्रीनाथ सेवा रसोदधि।
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बंसी न काहूके बस बंसीने कीने री बस बंसीकों बजाय जानें बंसी जाके बस है।
अधर रस प्रेम माती छिनहू न होत हाँ ती कानपरी प्राण लेत वे चसके रस है।।
नये नये नेह बाढे मोहनलाल नचाय छांडे ललित त्रिभंगी कान्ह मोहन सौं अस है।
हित हरिवंस परस्पर प्रीतम राधा वृष भाननंदिनी सों रस है।।
🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂                                 जय गोकुल के चंद की
श्री मदन मोहन प्रभु विजयते
श्री मथुराधीश प्रभु की जय
श्री नवनीत प्रिय प्रभु की जय
श्री गोवर्धननाथ प्रभु की जय
जयश्री कृष्ण
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