बेचारा जगत , तृषित
सारी सरकारी योजनाएं जो निर्धन हेतु होती उसका लाभ कौन उठाता सम्पन्न । क्यों ??? यह सम्पूर्ण दृश्य प्रपञ्च बेचारा है । बेचारा अर्थात वो पशु जिसके पास चारा नहीं ... ... ! अब यह तो लौकिक अरबपति से ही पूछ लो वह भी ऐसी फक्कड़ी भीतर भरे है कि कभी तो हृदय कहता कि सड़क के फकीरों का निवाला भी इन धनिकों को दे दिया जावे । क्योंकि सत्य में जो निर्धन है ...अभाव मय है वें विशाल सहनशक्ति रखते है । पर यह बेचारे वैभव सम्पन्न जीव , इन्हें चारा चरते-चरते हुए रोते हुए नहीं देख सकते ।
हम सोचें कि निर्धन के घर भी दिव्य उत्सव हो परन्तु वहीँ निर्धन को दी योजनाओं के लाभ के लिये बैठे बाहरी धनी और मन के निर्धन ... वो अवसर झपटने लगें ।
और इस समाज में एक वर्ग है जो आपको दायरे में बांध बार बार शोषण करना समझता है ।
वास्तविक निर्धन के पास रोटी ही नहीं भगवतोत्सव कहाँ से सोचे , उसके पास शायद वो चैनल भी नहीं जिनमें वह विशाल कथायें देख टेलीविजन को मंदिर मान लें ।
हम सोचें थे कि सच्चे निर्धन के यहां उत्सव होगा तब कोई राम रूप खड़े हो व्यवस्था सम्भाल लेवेगे । पर हुआ क्या ????
बेचारा धनी वर्ग ही निर्धन होने लगा । तो आध्यात्मिक पथ पर निर्धन अभावमय जीव के रसास्वदन का हरण होने लगा है । कोई बात नहीं , जगत है ही बेचारा पर यह बेचारा या बेचारा बना देता किसी को या स्वयं बेचारा रहना चाहता । बहुत से दिव्य पांडाल अरबपति को बेचारा बना देते है , जिससे निर्धन के लिये सत्संग गूंगे का गुड़ ही हो गया है । तो देखते है आगे लीलाएँ क्या गति लेती है । बेचारे जगत की यह विचित्र यात्रा । तृषित ।
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