प्रियतम से मिलन प्रियतम द्वारा ही होता है

प्रियतम से मिलन प्रियतम द्वारा ही होता है ।
प्यास आवश्यकता है यहाँ , प्रयास होने चाहिये परन्तु मिलन और दर्शन उनकी अनुकम्पा से होता है ।
प्रियतम जब प्रियतम हो जावें अर्थात् सबसे प्रिय , मन और हृदय के अभिष्ट वही रह जावें तब प्रियतम की व्याकुलता उदित होती है ।और फिर हरि को वरने योग्य गुण हरि ही वहां प्रस्फुरित करते है , वह हरि मिलन के गुण उनकी ही कृपा से होते है और उनका समुचित स्तर तक निभ जाना भी प्रयासों से नही हरि कृपा से है । तब हरि संगम होता है । वह सबके है पर जहाँ जितनी पिपासा उतने ही उदित , और जहाँ वह वरण करना चाह लें वहां कुछ विशेष न होने पर भी सर्वता स्वतः हो जाती है और रस प्रकट हो जाता है । यहाँ हरि पिपासा और व्याकुलता की स्थिति में अपनी प्रियता को ही देखते है , और उसे ही वरण करते है ।

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