वृन्दा विथिन में मेरे प्राण बसे है , तृषित
वृन्दा विथिन में मेरे प्राण बसे है
वृंदा रज कन्दन प्रियालाल रमे है
कालिन्द तरँग युगल रस लहर छिपी है
गिर्राज रूप प्रेम थिरता उठ सजी हुई है
युगल राग रस कीर्ति संग वृन्द विपिन खिली है
अलिन रीत सु नव-नागर प्रीत भेद पट हटी है
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