भजन ही सार है , तृषित
भजन ही सार हैं । कृपा फलित हुई तब भजन की धारा बहेगी । भजन की व्याकुलता भजन रसमय करती है । भजन कर्म साध्य नहीं , गुरु-भगवत् कृपा से साध्य है । भजन की प्राप्ति ही भगवान का पूर्ण अनुग्रह है। कृपा से अनुभूत भजन रसमय है , कर्म रूपी भजन श्रम रूप है जिसका लौकिक फल हो सकता है , रसमय फल नही । भजन से रस पृथक नहीँ , रस हेतु भजन अनिवार्य है । भजन या भगवत् सुमिरन कृपा है यह अनुभूति तत्क्षण रस प्रकट करती है। रस व्याकुलता में भजन नित्य हो जाता है और भजन की व्याकुलता गहराने लगती है ।
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