चन्दन सेवा पद , तृषित

भाव सिंधु माही तरत डूबत,कियै रही सखी चंदन कौ सेवा।
य़ुगल करूणा हिय उमडी आवै,निज भाग पर वारि जावै।
घिसत चंदन देखत जबहि,प्रिया सेवा लोभी इत आवै।
मधुर मधुर बातन सो सखी कौ,सेवा आपहु लैनो चाह्वै।
कोउ राह जबै नाहि सूझै,प्यास लगी कह जल सबै पीबै।
उरझी सखी कैसो सेवा करिहै,जल लैन कूप माही आवै।
पीछे सौ मोहन रंग दिखायौ,असुवन मिलाय चंदन घिसिहै।
खस,कर्पूर,सुगन्ध इत्र को,चंदन घोटत लेप बनावै।
तबै बिचारै मौहन मन मा,असुवन सो खारा जे हौहै।
गयै तुरत ही लावत मिश्री,बन्यौ चंदन मा ही मिलावै।
आवत जल ले सखी ज्यो ही,न्यारौ चंदन कर सो थमावै।
चली अकुलाती अति हिय सखीही,पहिली ही सेवा मो नै बिगारी।
सखी चंदन ले पद लौ छुवाही,मोहन छूवन सो राधे पावै।
निरखत चंदन मा ही सब लीला,झट मुख लगा सबै पीय जावै।
नैनन सो सखिन जल बरसे,नैनन श्यामा बरसत जावै।
कैसौ अद्भुद सेवा किन्है,लीलाधर नव नित लीला रचावै।

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