झुलत लाडिली झुलावे नन्दलाल , तृषित

झुलत लाडिली झुलावे नन्दलाल ।
झुलावे नन्दलाल झुलावे रस सरताज ।
फूलन डोरी पकड़त करकंज लगावत वेग अपार ।
जग को डुलावे झूलन न हिल पावै ।
रह जावत कोमल वेग हिंडोला धीम धीम चाल ।
लाडिली संग ललिन दो बैठी मचावै शोर , खिजावे तनिक वेग लगाओ नन्दलाल ।
अरी सखी या नाना भोग पावत नवनीत चुराय चुराय खावत ।
कोटिन ब्रह्माण्ड भ्रुकुटिन डुलावत ।
लाडिली हित तनिक जोर न धावत । देखत रसिकवर को भीगत मुखचन्द्र मन्द मन्द मुसुकावे रसीली जु ।
जग को झुलावै लाडिली संग हारे ऐसो पियलाल पाय बलि-बलि अलीन सब जावें ।
--- सत्यजीत तृषित ।।।

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