श्री जी चित्र लीला पद
कुंजन माहि तले तरूवर छाँह,श्यामा कछु औंधी सी बैठ्यी।
बाट देखत देखत मोहन कौ,चित्र बनाय मग्न अतिहि भयी।
टूटे न नेक ध्यान चित्र सो,सखिया मंद मंद हसिहि।
चकित भयी देख जे चित्रण,हिय कौ पीर अतिहि बढ्यी।
ज्यौ बैठत चित्र बनावत,त्यो की त्यो कागज मा उकरीही।
हिय सो मौरे पिय निकरै कही,तबही अपनौ चित्रण करिहि।
आयौ कुंजन तबहि मोहन ,लै चित्र अति आनंद सो भरही।
आकुल देखत प्राणन प्यारी,समुझावत मोहनजु तबही।
नाही राधिके मै हिय सू निकर्यौ,सुन कौन सौ कारण तुव जे करिहि।
चित्र बनावत रही जबहि तु,मेरौ हिय तौरी जे छबि बसिहि।
तेरौ हिय नित मेरौ हि चितंन,सो मोरे हिय तू झाकत रहही।
जेहि कारण मोरी भोरी राधिके,तुव जे प्यारौ चित्र बनाही।
सुनत धीर बंधत राधे कु,हिय मा मुख पिय के छिपाही।
लीला दर्शन सुन यह पद आँचल जु लिखी है
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