पार्ट 1 क्या एक बार रसमय होकर पुनः कोई निरस हो सकता है
क्या एक बार रसमय होकर पुनः कोई निरस हो सकता है
प्रथम गहन रस दर्शन इसलिये होता है कि यथार्थ व्याकुलता तो हो ।
एक बार रस की चटक लगेगी तभी तो सच्ची व्याकुलता होगी ।
यह रस प्रकट होगा गहन स्थितियों में ...
पर पुनः यह भाव हो जाएगा । भाव की विभिन्न अवस्थाओं में गोते लगायेगा । यही भाव महाभाव स्पर्श से रस अनुभूत करेगा । रस अनुभूति महाभाव को ही अब होगी । और वही युगल मिलन का सुख निज सुख रहेगा ।
यह व्याकुल अवस्था एक रस अवस्था को ही समेटे है , जिसमें विरह भी पूर्ण नहीँ और मिलन भी पूर्ण नहीँ , और इस स्थिति से व्यथित युगल के सुख को समेटे सखी प्रकट होती है ।
सखी प्रियालाल के मिलन से सुखी ।
जैसे
जीवन में तौलिया सारा दिन काम नही आता पर उसका सिमित समय ही बड़ी सेवा करता है । अतः सेवा स्वामी अनुरूप हो । स्व अनुरूप नहीँ और स्वामी का हृदय आपके ही भीतर से उनकी इच्छा कहेगा जब आपके भीतर स्व इच्छा न हो ।
यह उदाहरण दिया । कि तौलिया चाहे मेरा मालिक सदा लिपटाये रखे तो यह स्वामी का सुख हुआ क्या ? अतः भाव सेवा युगल की छोटी ही हो । परन्तु दर्शन और वहाँ उपस्थिति से कोई नही रोक सकता । जैसे उपयोग के बाद भी है तो वही तौलिया । वह अपने स्वामी के हाव भाव से अप्रकट आनन्द को अनुभव कर सकता है ।
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