माधुर्य रस , तृषित

कान्हा पुकारते ही सुनते ही भीतर रस उतरा ।
हृदय में भाव होते ही भाव रूपी दृविभूत तरल मधुरता बह कर पुष्प वत भीतर विकसित होती है । तो रस का भीतर नाम आदि द्वारा प्रवेश कृपा यानि भीतर की प्रिया जी की वाणी से झरती महक , भक्ति मैया प्रकट हो वह पुकारे , तुम नहीँ , फिर क्या वह नहीँ दिखेंगे , कल्याण का अणु सँगठित हो शिव रूप हो पुकारे क्या राम प्रकट ना होंगे । कल्याण की भावना ही करुणा है । यानि वहीँ शिव भक्ति तत्व हो गए शिव हृदय यानि कल्याण का भाव अर्थात भक्ति अर्थात राधा अर्थात दृविभूत महा मधुर प्रिया रस । भीतर से प्रियतमा का यह मधु रस पुष्प जो पुष्प से नहीँ पुष्प के सार मधु से खिला सार तत्व है , कर्म मार्गियों से पूछता हूँ क्या आप बिना ईश्वर की कृपा का अवलम्बन बिना मधु की एक बूँद प्राप्त कर सकते है । मधु मक्खी न हो तो ... और पुष्प ही न हो तो ... तो मधु की एक बूँद बिना कृपा से सम्भव नहीँ तो माधुर्य सार सर्वस्व मधु निधि श्यामा सरकार की मधु पुष्पवयता ....

एक बूंद मधु बिना कृपा से सम्भव नहीँ तो अखंड प्रसार से महासार सिंधु निधि दिव्य अति माधुर्येश्वरी राशि श्री प्रिया अर्थात वास्तविक भाव का घनीभूत महाभाव हृदय उस नाम को सुनता हुआ उससे मिले ... वह नित्य वर्द्धित अप्राकृत महाभाव तत्व वह प्रिया रूपी कमल है जिस पर नाम रस से प्रकट रस की सुगन्ध से आया भृमर का अधरामृत रस का पुष्प के माधुर्य रस से जो स्पर्श है , मिलन है ।  तृषित ।

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