प्रेम और मोक्ष , तृषित
प्रेम और मोक्ष में आमतौर पर प्रेम में मोक्ष के त्याग को प्रेम कहा है । मोक्ष क्या है ? यह जानना जरूरी है । मोक्ष अवस्था है जो तुम स्व बुद्धि से नहीँ हो सकते ... भगवत धाम में । अर्थात कृपार्थ्य । जीवन के सुख का त्याग ही त्याग ही त्याग है और जीवन के सुख को जीना ही भगवत सुख है । अर्थात दूध का सुख दूध रहना । जीवन में बुढापे से भागने की इच्छा का पूर्ण होने का सुख । नित्ययोग प्राप्ति की स्थिति किशोर अवस्था , योग द्वारा किशोर अवस्था की ही अधिक दिव्य योग स्वीकृति का सुख का त्याग काम बीज रूप धरा पर प्रसारित करना अर्थात
मोक्ष के बदले बार बार कर्मो को भोगते हुए कोटि योनियों में गमन अर्थात संसार बार बार स्वीकार्य है या मोक्ष । अगर संसार में दुःख के संग से भगवत पथ स्वीकार्य है ... दुःख भगवान तक ले जाता है तो सुख के संग अर्थात हर्ष के संग कृष्ण प्राप्ति फल मोक्ष अर्थात भगवत्संग का आंतिरिक त्याग कर सकें , अर्थात सन्मुख भगवान को देख उनके सुख के लिये कहे हाँ तुम हाथी घोड़े सब कुछ हो गए हो । सब तुम हो गए हो इसे कहने का जो पथिक त्याग कर सकें वह विशुद्ध प्रेमी है और उसके नेत्र में शयमसुन्दर ही सब कुछ बन बिखर गए है धरती पर ... प्रेम में काम् भोग नहीँ लिया जाता । अर्थात नारी को कामक्रीड़ा का सुख है वह कृष्ण सुख संग का रस पान ना करें वह प्रेम है । , यह कथन नही है , प्रेम है ... कहना नही इसे ठीक न ।
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