उनसे कोई बात मत कहिये , तृषित

उनसे कोई बात कहिये ही मत ।
बस इतना सीख जाइये ।
खूब मिलिये ।
खूब उनका संग कीजिये ।
पर हाल चाल मत कहिये ।

सब शिकायत करते कि वह सुनते क्यों नहीँ ।
हम कहते है आप उन्हें कहते ही क्यों है ? क्या वह कहे संसारी दुखड़ा रोने को ?
नित्य मिलिये ... खूब प्रेम कीजिये ।
परन्तु जगत की एक अभिव्यक्ति भी ना कहिये ।
अपनी बात कह कर आपको सुकून मिला या नहीँ मुझे नहीँ पता ।
पर ना कह कर ऐसा कुछ मिलेगा जिसकी आप कल्पना भी नहीँ कर सकते ।
आप कहे इसलिये वें संग संग हो चलेंगे । पर कहियेगा नहीँ ।
ना कहना ही अपार शांति से भर नेत्रों से बहता रहेगा ।
अपने व्यवहार की वेदना कभी प्रभु को मत कहिये , कह कर हम संग का अनायास त्याग करते है । संसार को अपना , उन्हें पराया सिद्ध करते है । ना कहोगे तो उनके हृदय के सुख की चिंता से उनसे प्रेम होगा , और उन्हें सुख हो रहा इस बात से अनकही पीड़ा विस्मृत ही हो जायेगी । ... मिलिये ... बिन कहे । मिलिये उनकी सुनने के लिये , वह नहीँ कहते तो आप क्यों पहल करते है । कुछ मत कहिये , उनसे सीखिये , मौन मुस्कुराना , हर बात पर ।
तृषित

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