प्रेम वह जो भगवान के लिये सोता है , तृषित

प्रेमी वह नहीँ जो भगवान के लिये जगता हो । प्रेमी वह है जो भगवान के लिये सोता हो ।
जिसका विश्राम श्री प्रभु का सुख हो । जिसकी निद्रा से प्रभु को सुख हो । जिसके स्वप्न में प्रभु ही हो । स्वप्न में संसार अर्थात मन अब भी एक का नहीँ हुआ । अब भी भीतर कुछ अवांछित पक रहा है जो चेतना में देह विश्राम में प्रकट होगा । हृदय - प्राण अनन्य रूप से पुकारें तो स्वप्न श्री प्रभु हो सकेंगे । श्री प्रभु ही स्वप्न हो , हमारा जीवन - संघर्ष आदि ही नहीँ , हमारा विश्राम उन्हें समर्पित हो जाएं । निद्रा वैराग्य अवस्था है , यह वैराग्य अवस्था आती है संसार में अति व्यक्त होने से थकावट रूप । अपने दुःख - पीड़ा में सब समर्पित है । परन्तु अपने प्रभु को निद्रा कौन अर्पण करता है । जीवन के पुष्पों से , रस से , प्रेम से प्रभु की श्रृंगार सेवा हो । ना कि जीवन के कष्ट-विषाद से । और हाँ सूकोमल पुष्प आता है काँटो बाद । दुःख के प्रभाव का फल आनन्द है , वह आनन्द अर्पण हो । हम जीवन की स्पर्धा , जद्दोजहद , हार , थकान , प्रतिकूलता के परिणाम में प्रभु तक पहुँचते है । फिर आनन्द - यश - कीर्ति - सुख - अनुकूलता लेकर लौट जाते है । हाँड़ी का भोजन चूल्हे पर कितना ही व्याकुल हो प्रभु को पुकारे , पर वह पक कर , कुछ पाने योग्य होने तक वह प्रभु के सन्मुख नहीँ ले जाया जाता । *आनन्द को आनन्द अर्पण हो* । विषाद - अग्नि - विपत्ति तो आनन्द रस को पकने के लिये है ।
तृषित ।

Comments

Popular posts from this blog

Ishq ke saat mukaam इश्क के 7 मुक़ाम

श्रित कमला कुच मण्डल ऐ , तृषित

श्री राधा परिचय