क्या संप्रयोग एवं विप्रयोग का संमिश्रण पिपासा रस है , तृषित
क्या संप्रयोग एवं विप्रयोग का संमिश्रण पिपासा रस है ?
जी । पिपासा , व्याकुलता , वास्तविक व्याकुलता रकार का अग्नि तत्व है अकार व्यापक प्रकाश म् कार चन्द्र की शीतलता ।
प्रकाश अर्थात ईश्वर का सम्बन्ध बोध सत्संग , कब होगा , जब पिपासा हो । प्रकाश से पूर्व र रूपी अग्नि की आवश्यकता है , यानि व्याकुलता । व्याकुलता जीव की नहीँ अपितु उसके विशुद्ध स्वरूप की हो । पिपासा सम्बन्ध के उस विशुद्ध स्वरूप की होगी तो स्वभाविक जगत विस्मृति होगी । यहाँ हम देह रूप से प्यासे होंगे तो पहले तो यह भोग प्रवृत्ति ही संकट बन जायेगी । मान लीजिये राम जी के निज दास साकेत के भीतर से पुकारे उन्हें तो उन्हें कौनसा यहाँ चाय - कॉफी छोड़ना होगा , उनका सब छूटा ही है । प्यास यथार्थ हो , कैसे होगी ? यहीँ पथ है ... जीव की प्यास में विकल्प , और शब्दजाल , रस की रस प्यास विशुद्ध । जीव को बस इतना जान लेना चाहिये मिलन मेरे प्रियालाल का हो तब ही मुझे वास्तविक तृप्ति होगी ।
संप्रयोग और विप्रयोग जनित रस ही पिपासा तत्व है , वही हित तत्व , वही वृन्दावनिय निकुंज लीला दर्शन की भूमिका । रस की रस प्यास ।तृषित।
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