शर्मा गये ... लजा गये .. तृषित
शर्मा गये ... लजा गये ... दामन चुरा गये ... !!
ऐ इश्क़ मरहवां वो यहाँ तक तो आ गए ... !!
लिखा किस भाव में पता नहीँ ... पर नारी ही प्रेम में शरमाये तो रस कहां ... रस तो जब , जब प्रियतम ...
यह हम साँवरे की स्थिति मान लें तो अहा ... !
क्योंकि वह शर्माने लजाने लगें ... यानि की उनमें वह इतनी तो उतर गई ... कि अब शर्माने भी लगें ... लजा भी जाते है ।
प्यारी उनकी यह शर्म हया देख मुस्कुरा रही है कि अब वह यहाँ तक आ गए ...
प्रेम की अभिलाषा है ... प्रियतम में जीवन हो जाने की । और यह यूं होती है ।
प्रेम में स्वरुचि आदि खो जाती है और अपने प्रियतम की इच्छा और रूचि जीवन में सहज होने लगती है । प्रिया की भाव दशा प्रियतम से छलके तो ...
लजाते हुए प्रियतम में उनके भीतर की लज्जा कहती है कि कितने डूब गए है ।
प्रिया प्रियतम के परस्पर इस बदले हुए भावदशा को प्रेम विलास विवर्त कहते है । जिसमें साँवरे जु के भीतर प्रिया रस प्रकट हो और प्रियाजु प्रियतम ही भीतर हो गई हो ।
लाली देखन मै गई मैं भी हो गई लाल ...
रस का आस्वादन ही जब है , जब रस और प्रेम परस्पर एक हो जाये ... !!
संयुक्त भाव रूप ही वृन्दावनीय रसिक युगल को निरखते है ... !
नीली शीशी में ... पीत रस और पीला ही लेबल यानि भीतर श्यामा भई ... और पीताम्बर से भी वह श्यामा अनुभूति में बाँवरे हो रहे ... !! मेरे लजाते प्रियवर ... मेरी इठलाती प्रिया । यानि बदली हुई भाव दशा ... !! श्री प्रिया योगमाया आश्रय में न मिलें तो उनका माधुर्य निमिष भर में प्रियतम को प्रिया रूपी अमृत सुधा सिंधु में मीन वत कर दें । अर्थात वह अभिन्न रूप हो जाये प्रिया माधुर्य में ... इतना गहन माधुर्य राशि वह । और यहीँ योगमाया के भी परे के गहन रस में हो जाता जिसका चिंतन और दर्शन सम्भव नहीँ दर्शन वही तक जहाँ तक योगमाया की प्रभा ... योगमाया के संयोग से हुई लीला में नागर - नागरी प्रभुत्व और मधुरत्व की सुधा सार भावना को भूल ... बाँवरे हो मिलते है । प्रेम की अनिवार्यता है ... स्वरूप विस्मृति । प्रिया जु उनकी प्रणाधिका है परन्तु वह स्वामिनी हो कर भी स्वीकार संगिनी और दासत्व करती है । स्वामिनी भाव रहें तो कैसे वह रस दात्री रस दान करें ... माधुर्य स्वामिनी प्रिया प्रेमाधीश्वरी होकर नहीँ प्रिया हो कर उन्हें रस प्रदान करती है ... तृषित ।।
Jai shree radhe krishna .Nahid badiya lines hai man pra fulltit ho gya
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