अगर वे नाराज हो गए तो , तृषित
नाराज हो गए वह ...
अब मनाना उन्हें ... उनकी नाराजगी बस इतनी सी है कि आप मान जायें कि वह नाराज हो गए । वस्तुतः वह नाराज होते ही नहीँ , कभी सम्भव ही नहीँ कि वह हृदय से रूठ सकें । बस अभिनय मात्र नाराज होते है , ताकि उन्हें मनाया जाएं । ब्रज गोपियों के सामने उनके यह खेल चले ही नहीँ , क्योंकि वह जितना किसी से प्रेम कर सकते उससे अधिक ब्रज वासी उन्हें किये । अतः रूठने पर तो लठ तक पड़ गए । वस्तुतः क्या वह कभी नाराज हो सकेंगे , कभी नहीँ । आपने मान लिया कि वह नाराज बस हो गई उनकी लीला , अब मनाना कैसे तो नाराज हो जब तो मनाए । उनके बाँवरे खेलो पर हृदय से मुस्कुराये । आपके नाराज साँवरे शर्मा जाएंगे । कह दीजिये ... तोहे ना आये रूठनो , रूठ कोई संग संग फिरे का । बाँवरो है तू । मो से रुठेगो तो मोहे एक पल देख सकोगे कौ ... मोहे देखनो है तो रूठन को अभिनय न किया कर । प्राण निकल गए तो तोहे खेल भारी पडेगो । तू सब कर सके , पर तेरो सब सो बड़ो दोष है तू रूठ न सकें , सच तू पग्लो ही रहेगो ।
तृषित ।
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