मैं नाम महाराज का संग नही कर पाती अपराध बन जाता हैं । तृषित
जय हो नाम महाराज जी
अपनी कृपा बनाये रखना
एक सवाल आ गया जेहन में
मैं कभी कभी वयस्तता मैं नाम महाराज का संग नही कर पाती अपराध बन जाता हैं। कोई राह दे न
ऐसा होने पर आप दर्शन करे उनका अथवा स्पर्श करें उनका जहां वह प्रकट अनुभूत हुए ।
दर्शन यानि स्वरूप दर्शन कैसे भी , मंदिर , धाम ,रज स्पर्श , तीर्थोदक पान , चित्र दर्शन , भले ही सहज कहे तो नाम दर्शन , अतः नाम लिखने में पूर्व सन्त श्रंखला ने सुन्दर सरस् विस्तार किया , नाम लिखने में मनसा वाचा कर्मणा भक्ति हो गई ।
वाचा भी आंतरिक होने से एकांत में यह करें तो , बाह्य जगत में करेगा तो मन एकाग्र होना कठिन होगा ।
किसी भी तरह उनका दर्शन कीजिये , भले सुनकर या कोई सत्साहित्य पढ़कर उनका दर्शन कीजिये , कहना ही नहीँ भागवत जी भगवान है भक्ति में मानना होगा और भगवत स्तुतियों , सन्त वाणियों में दर्शन कीजिये उनका । भगवत दर्शन अति गूढ़ तत्व है । क्योंकि भगवत दर्शन ही सत की सत्ता है । वसुदेव सर्वम । तृषित ।
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