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Showing posts from October, 2016

रसिक दर्शन नेत्र कृपा से रस दर्शन , तृषित

श्री हरिदास सरन जे आये । कुंजबिहारी ललित लाडिले अपने जानि निकट बैठाये । रसिक आश्रय , से रस उज्ज्वल होता जाता है । श्यामाश्याम रस , यह वृन्दावन रस , युगल प्रेम और ब्रज कुँजन की र...

भूमि और गौ का क्रय विक्रय , तृषित

पूर्व समय में भूमि ,गौ आदि का क्रय विक्रय नही होता था । यह सब पाप है । दोष है । दान और सेवा हो सकती थी । खरीदने बेचने से दिव्य अधिष्ठात्री शक्ति के प्रति वस्तु भावना आ जाती है । व...

स्वधर्म की निजता , तृषित

धर्म बाह्य रूप से सामूहिक अभिव्यक्ति प्रतीत होता है । और समूह की सामूहिक भावना को ही धर्म स्वीकार किया जाता रहा है । बाह्य रूप से एक लगने पर भी वास्तविक धर्म सर्वत्र भिन्न ह...

असार में छिपा सार , तृषित

जीवन के पुष्पों से अवगत कराया काँटो ने । पुष्प ही होते तो अनुभूत न होते , उनकी तलब सच्ची न होती । काँटों ने उनकी आवश्यकता को सच किया । जीवन में जहाँ पीड़ा नहीँ , वहाँ निरोगी होने ...
अपना अवलोकन करते रहना है , कही अभिनय तो नही हो रहा , अध्यात्म -भक्ति-प्रेम का । क्या वास्तव में हम पथिक सत्यपथ  के अथवा केवल टहलते-टहलते आये पथ के बाहर खड़े दर्शक । लगता तो है पथि...

ठाकुर का अतिनेह

*ठाकुर जी का अतिनेह* अनेको चरित्र है ऐसे कि श्रीविग्रह ठाकुर प्रकट है , वह जीते है भक्त की सेवा भावना को । अनेको चरित्र ... शहद पास रखा हो जगा कर कहते है , मुझे चींटियाँ खा रही इसे हटाओ न ।  एक भक्त निवाई के श्री सन्तदास जी जगन्नाथ का छप्पन भोग देख आये , मन हुआ मैं भी ऐसी सेवा करूँ . कैसे तैसे वह सब तैयार हुआ , हुई सेवा । लो बिन बुलाये जगन्नाथ जी भी आ गए , और जम के पाये । बल्कि कहे कल और 56 भोग । अब कैसे तैसे एक दिन की फिर कैसे ?? पर भक्त जी दुगने उत्साह से तैयार अब , क्योंकि जै जै को रस मिल रहा , उन्हें भाया यह पता चलते ही अनन्त शक्ति समा गई जैसे । फिर कहे कल भी ... !! नित्य यही ... ! भक्त श्री सन्तदास जी असमर्थ लगे तो कहे पूरी के राजा साहब को स्वप्न में कि अभी यहाँ हूँ निवाई ,और यहाँ 56 भोग की व्यवस्था कराओ न , होने लगे नित्य 56 भोग । भक्त और भगवान की लीला चलती रही कब तक , वही जाने । रोनाल्ड निक्सन (श्रीकृष्णप्रेम) अनेक भक्तों संग श्री विग्रह संग अनेकों अनुभूतियाँ इन्हे भी हुई । बहुतों को होती ही है बस मन रम जावें ।  पर इस बार जो हुआ वह तो ..  एक दिन सोते समय श्रीकृष्णप...

तृषित चौथ पर एक पद भाव

[10/19, 10:28 PM] सत्यजीत तृषित: कोटिन चन्द्रज पंक बनत जिन चरणन संग दमकत निशि या श्यामल तव चरणन स्पर्शन संग शीतल ठुमकत प्रिया पुलकन मधु मिश्रित पवन अणु पावत चन्द्रिका जगमग [10/19, 10:37 PM] सत्यजीत त...

ग्रुप्स का नया नियम

एक बात आई मन में आज इतने ग्रुप और व्यर्थता को सिमित करने हेतु । कृपया गलत ना लीजियेगा :: अब प्रति ग्रुप मेसेज 5 रुपये चार्ज होगा । क्योंकि फ्री में तो सारा दिन मेसेज करते हम अपन...

प्रेम में जो युगल में और भिन्न होकर सेवा परायण वृत्ति है वह सखी है , तृषित

प्रेम में जो युगल में और भिन्न होकर सेवा परायण वृत्ति है वह सखी है । जैसे जगत में भगवत् शक्तियाँ ही जीव में कार्यरत् है वैसे युगल में रसविस्तार हेतु शक्ति जो है वह सखी है , युग...

वह वही थी , श्यामा । तृषित

वह निहार रही थी मुझे ...निहारती जा रही थी ... उसकी पलकों ने झपकना बन्द किया ... उनमें माधुर्य सरसराने लगा .... मैंने ध्यान से देखा । हाय , वह वही थी । ... यूँ कोई इस तरह विग्रह में मुझे निहारत...

राधा दास्य की बलवती लालसा , तृषित

राधा दासी बनने के लिये बलवती लालसा हृदय में जगनी चाहिये । गाढ़ी लालसा ही रागभजन की प्राण वस्तु है । तीव्र उत्कंठा के बिना राग भजन का माधुर्य समझ में नही आता है । जैसे विषयी का...