असार में छिपा सार , तृषित
जीवन के पुष्पों से अवगत कराया काँटो ने ।
पुष्प ही होते तो अनुभूत न होते , उनकी तलब सच्ची न होती ।
काँटों ने उनकी आवश्यकता को सच किया ।
जीवन में जहाँ पीड़ा नहीँ , वहाँ निरोगी होने का अर्थ उदय नही हो पाता ।
दुःख आता है प्राकृत सुख से , क्षणभंगुरता से नित्य आनन्द में लें जाने को । तृषित
अनन्य पीड़ा से ही जीवन का निर्माण होता है । कितना ही सुख सम्पन्न जीव हो , जन्म से पूर्व वह कठिन पीड़ा में रहा है और जन्मदात्री भी सम्पूर्ण जीवन में वही पीड़ा कठिन पाती है जबकि जन्मदात्री होने के गुण में पीड़ा में भी आनन्द निहित है ,वहाँ जीवन की सर्वाधिक पीड़ा होने पर भी सर्वाधिक आनन्द जन्मदात्री स्मृति में रखती है ।
शिशु के जन्मते ही उसे कोमल से कोमल तरीके से रखा जाता है । गर्भ में प्रकृति वेदना और भीषण दैहिक अशुद्धियों में जीवन सजाती है । आवश्यक सुरक्षा प्राप्त है , आवश्यक संसाधन भी । अतिरिक्त साधन और संसाधन विकास के सहयोगी कम बाधक अधिक है ।
तप से जीवन वास्तविक्ता की और जाता है और प्रेम में स्वसुख त्याग ही महा तप है ।
असार और अपशिष्ट में निहित महासार-महास्रोत विपरीत स्थिति में तत्व की सम्पूर्ण शक्ति को एकत्र कर देती है , जैसे दूध - मनुष्य धान खाता है , शेष भाग नही खाता है , त्यागता है , जो जीव त्यागा हुआ भाग अर्थात् घास (अपशिष्ट) खाते है वह घास में से भी दोहन कर जीवनऊर्जा रूपी दूध प्रकट करते है । और धान रूपी सार खा कर भी मानव चेतना कम जड़ता और मल ज्यादा जुटाता है ।
अपशिष्ट में घास में भी रस है , अपितु मूल रस है विकट स्थितियों में । धान या अन्न कष्ट से अपरिचित है शेष पादप (धान के अतिरिक्त फसल ) ने कष्ट पीकर रस रूपी धान का विकास किया है । रस के क्रमशः त्याग से फल या अन्न विकसित होते है और इस प्रक्रिया में शेष में स्वभाविक शक्ति उदय होती है स्वार्थ के त्याग से ।
अपशिष्ट के कई उदाहरण है जैसे गिरे वृक्ष आदि का शक्ति संवर्धन से कोयला और इंधन होना । पत्थर का विशेष स्थितियों दीर्घ काल तक तप में रहने से रत्न आदि में विकसित होना ।
परिस्थिति सदा विकास हेतु है , स्वभाविक दृष्टि से देखने पर कुछ भी अमंगल हेतु नही हो सकता । प्रलय में एक उत्पत्ति सदा निहित है । उत्पत्ति सदा कुछ प्रलय पर ही सम्भव है । जो है वह कुछ घटेगा , संघर्षित होगा , तब ही कुछ अन्य वह होगा । और समस्त परिवर्तनों में जो सदा नित्य नियमित है , अपरिवर्तनिय है वहीँ तो नित्य सत्य तत्व है । तृषित ।
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